Sunday, December 23, 2012

यू-ट्यूब की टिप्पणियाँ



यू-ट्‌यूब ने संगीत के शौकीनों के लिए जैसे जन्नत का दरवाजा खोल दिया है। क्लासिकल के मुरीदों के लिए अब पुराने कलेक्शन के शौकीन लोगों की तलाश नहीं करनी पड़ती। क्लासिकल का सारा कलेक्शन यहाँ है। अगर किसी ने कुमारगंधर्व की खनकती आवाज न सुनी हो, तो कबीर के एक से बढ़कर एक कलेक्शन यू-ट्‌यूब में मौजूद हैं। कबीर का विलक्षण संदेश चाहे वह आबिदा परवीन की आवाज में हो अथवा सबरी बंधुओं के, यू-ट्‌यूब में सब मौजूद हैं। क्लासिकल के धुरंधरों और हिंदी  सिनेमा के दिग्गज गीतकारों-संगीतकारों की प्रशंसा में लिखी गई टिप्पणियाँ भी काफी रोचक हैं और वे भी किसी कलाकृति से कमतर नहीं लगती।
 चुनिंदा उदाहरण इस महासागर से मैंने उठाये हैं। मसलन कुमारगंधर्व पर टिप्पणी करते हुए उनके एक प्रशंसक ने लिखा है कि जब कुमारगंधर्व गाते हैं तो उनके गले से भगवान बोलता है। आबिदा परवीन पर लिखते हुए उनके एक प्रशंसक ने लिखा है कि पाकिस्तान की सबसे बड़ी उपलब्धि न्यूक्लियर बम नहीं अपितु आबिदा परवीन है। इन रोचक टिप्पणियों से कई बार प्रशंसक कलाकार के हालात से भी रू-ब-रू होते हैं। मसलन आबिदा परवीन को माइनर हार्ट अटैक आने की सूचना एक प्रशंसक ने दी, उसके बाद बहुत से प्रशंसकों ने उनके शीघ्र स्वास्थ्य लाभ की कामना की। 
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यू-ट्‌यूब में आई टिप्पणियों में से विदेशों में बसे भारतीयों की भी दिलचस्प प्रतिक्रिया सामने आई है। १९६१ में बनी फिल्म काबुलीवाला में गुलजार द्वारा लिखे गीत ऐ मेरे प्यारे वतन पर पर अमेरिका के एमएमएल शर्मा ने अपनी पुरानी स्मृति बताई है।  उनके अनुसार बात १९६९ की है उस वक्त अमेरिका की प्रिंसटन यूनिवर्सिटी में भारत के गणतंत्र दिवस समारोह के आयोजन में बहुत से भारतीय और अमेरिकी शामिल थे। इस कार्यक्रम में किसी ने ऐ मेरे प्यारे वतन गीत गाया। कार्यक्रम में कोई भी भारतीय ऐसा नहीं था जिसकी आँखें नम न हुई हों। अमेरिकी इस दृश्य को देखकर आश्चर्यचकित थे, उन्होंने इस गीत का अंग्रेजी में अनुवाद करने कहा। दिल ढूँढता है फिर वही फुरसत के रात दिन, यह लंदन में बसे एक भारतीय ने यू-ट्‌यूब में लोड किया। उसने अपनी तीन पीढ़ियों का प्रदर्शन इस गीत के माध्यम से किया। पाँच मिनट के गीत के बीच के दृश्यों में तीन पीढ़ी सिमट आई। ये पीढ़ियाँ एक दूसरे से बिल्कुल अलहदा जान पड़ती है। शायद ही इस देश में इससे पहले की पीढ़ियों में तीन पीढ़ियों में इतना बदलाव देखा गया हो। इस गीत पर टिप्पणी करते हुए यूके में ही बसे एक भारतीय ने लिखा कि फुरसत के वो रात-दिन इतने कीमती थे कि उसके मुकाबले यहाँ की भौतिक सुविधाएँ काफी तुच्छ लगती हैं। मासूम के गाने तुझसे नाराज नहीं जिंदगी पर आने वाली टिप्पणियाँ भी काफी दिलचस्प हैं। लंदन में बसे एक भारतीय ने इस पर टिप्पणी की, मेरा बेटा अठारह साल का था, वह हमें छोड़कर इस दुनिया से चला गया। वह इतना ही मासूम और प्यारा बच्चा था जितना मासूम का जुगल हंसराज। मैं हर दिन इस गाने को सुनता हूँ और इसे सुनते हुए अपने बेटे को याद करता हूँ। इस टिप्पणी के अरसे बाद एक युवा लड़के ने टिप्पणी की। मैंने अपने पिता को पाँच साल की उम्र में खो दिया था, उनकी तलाश में मैं बार-बार इस गाने तक पहुँचता हूँ। आप मुझे अपने बेटे जैसा माने तो मुझे बेहद खुशी होगी। मासूम में काम करने वाले दो बच्चों जुगल हंसराज और ऊर्मिला मांतोडकर का क्या हुआ, यह सबको मालूम है लेकिन तीसरी बच्ची आराधना जिसने अपनी तोतली जबान से दर्शकों पर अलग प्रभाव छोड़ा था, कहाँ चली गई, कम ही लोगों को मालूम होगा। यू-ट्‌यूब में जब किसी ने इस संबंध में दिलचस्पी दिखाई तो उनकी जिज्ञासा तुरंत ही किसी ने पूरी कर दी। उसने बताया कि आराधना अब एक स्कूल टीचर है और उनकी दो बेटियाँ है।  केवल भारतीय ही नहीं, भारतीय गानों पर यूरोपियन लोगों ने भी टिप्पणी की है। मसलन रोमानिया के एक नागरिक ने तीसरी कसम के गाने लाली लाली डोरियाँ में लाली रे दुल्हनियाँ पर टिप्पणी लिखी।  उसने लिखा कि इस धुन ने उसे बहुत आकर्षित किया और प्रयत्न कर इसका अर्थ जानने की कोशिश की। उसने बताया कि यह कहानी एक वेश्या और एक गाड़ीवान पर आधारित है। वेश्या गाड़ीवान से प्यार करने लगती है और घर बसाने का सपना देखने लगती है। बच्चे उसे दुल्हन समझ लेते हैं और नई दुल्हन का स्वागत करने यह गीत गाते हैं। इसके बाद किसी भारतीय ने टिप्पणी की, दरअसल वो वेश्या नहीं थी, एक नाचने वाली थी। वो जो नाटक मंडलियों में नाचकर लोगों का मनोरंजन करती है। ऐसा ही एक गीत १९५३ में आई फिल्म सुजाता का जलते हैं जिसके लिए, शिरीष मेहता ने टिप्पणी की है मैं उस दिन को कभी नहीं भूल सकता, जब मैं मुंबई के एक रेस्टारेंट में था जो युवाओं से भरा हुआ था। जब किसी ने रिकार्ड में ये गीत चलाया तो पूरी महफिल में पिन ड्राप साइलेंस हो गया। हर गाना अपने साथ कई किस्से समेटे रहता है और कुछ गाने ऐसे होते हैं जिन्हें हम सुनकर एक खास समय में पहुँच जाते हैं। घरौंदा फिल्म के गाने दो दीवाने शहर में पर किसी ने टिप्पणी की है कि यह गाना मुझे उन दिनों की याद कराता है जब मैं और मेरा भाई मुंबई की गलियों में छत की तलाश में भटका करते थे और यह गाना गुनगुनाया करते थे।
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 ज्योति कलश छलके पर टिप्पणी करते हुए किसी ने लिखा है कि अगर किसी को पूरी भारतीय संस्कृति किसी एक गीत में सुननी और समझनी हो तो वे इसे सुने और देखे। प्रेमी अपने सबसे मधुर पलों को याद करते हैं मसलन फिल्म जीवा के गाने रोज-रोज आँखों तले पर किसी ने टिप्पणी की है। मुझे यह गीत अपने बड़ौदा के दिनों की याद दिलाता है जब मैं अपने प्रेमिका के साथ शाम को घंटों बतियाता था। इन टिप्पणियों को सराहे जाने अथवा नापसंद किये जाने की भी पूरी गुंजाइश यूट्‌यूब में है। अधिकतर तीखी टिप्पणियाँ उन लोगों पर की जाती है जो गाने को नापसंद करते हैं। मसलन क्लासिक दौर के एक प्रशंसक ने बड़े अच्छे लगते हैं गीत को नापसंद किए जाने वालों को शीला और मुन्नी के बच्चे कहा है। नये गानों पर टिप्पणी भी कम दिलचस्प नहीं है। मसलन शीला की जवानी से प्रभावित एक श्रोता ने टिप्पणी की। अगर शीला पहले जवान हो गई होती तो मुन्नी उतनी बदनाम नहीं होती।

3 comments:

  1. बड़ा सुंदर और बड़ा रोचक लिखा है आपने .....
    आभार आपका ....यादों के समंदर में गोता लगवा दिया !
    खुश रहें!

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  2. रोचक विश्लेषण ओर विवेचन ... सच है की नेट ने क्रान्ति ला दि है हर क्षेत्र में ...

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  3. sheela aur munnee ko to chodiye ha ye hakeekat hai ki you tube ke roope me hume anmol khazana hath laga hai........
    sunder post ke liye Aabhar !

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आपने इतने धैर्यपूर्वक इसे पढ़ा, इसके लिए आपका हृदय से आभार। जो कुछ लिखा, उसमें आपका मार्गदर्शन सदैव से अपेक्षित रहेगा और अपने लेखन के प्रति मेरे संशय को कुछ कम कर पाएगा। हृदय से धन्यवाद