मेरी माँ को वट वृक्ष के तले कथा सुनते हुए ...
सहसा मुझे लगा कि यम तुम कितना बदल गए
तुम कितने दयालु थे सुहागिनों के लिए दे देते थे कितने आशीष...
अपनी बनाई हुई मर्यादाओं को भी देते थे छोड़...
सुहागिनों को सुहागवती होने का वर देते थे खुशी से...
फिर सहसा तुम्हे क्या हुआ...
कभी भी तोड़ देते हो नेह की डोर..
बिना बताए, बिलखने छोड़ देते हो सुहागिनों को
तुम्हें उनकी चूड़ियों की खनखनाहट अब बुरी लगने लगी है न
क्या तुम्हें अब गर्मियों में उनका अपने सत्यवान के लिए गिड़गिड़ाना बुरा लगने लगा है...
तुम इतना क्यों बदल गए यम