पूजा ने कल चिपलूण से शाम ८ बजे फोन किया,कहा भैया इंग्लिश विंग्लिश आ रही है जरूर देखिये। इससे पहले उसने कभी फोन कर पिक्चर देखने की सिफारिश नहीं की थी। मैं यह फिल्म देखने ग्लिट्ज सिनेमा गया था लेकिन दुर्भाग्य से टिकट नहीं मिल पाई थी। इसके बाद अगली फिल्म लाइफ आफ पाई देखी। यह फिल्म देखते हुए सोचने लगा था कि कितने महान विषय पर बनी फिल्म देखने आया हूँ और कहाँ पिछली बार एक सामान्य गृहिणी पर बनीं फिल्म देखने जा रहा था। मेरे मन में इस फिल्म के प्रति तुच्छता के भाव आ गए, इन घर-गृहस्थी के विषयों पर तो कितनी ही फिल्म बनाई जा सकती है लेकिन पाई के साहसिक जीवन पर बनी फिल्म महान ही होगी।
इंग्लिश-विंग्लिश के पहले १० मिनटों में ही जान लिया कि मैं कितना गलत था। एक अधेड़ महिला की पीड़ा को पहली बार रूपहले सिनेमा में जगह दी गई, जिसने घर के लिए अपना पूरा जीवन बिता दिया लेकिन वहाँ ही उसे सम्मान के दो शब्द नहीं मिले। क्लास टीचर के साथ हिंदी में बोलने पर अपनी बिटिया की ओर से अपमान सहना पड़ा। मुझे अपना बचपन याद आता है कि कई बार माँ को बेवजह परेशान किया, सबके सामने बेवजह गुस्सा दिखा उनका अपमान किया। फिल्म में एक छोटी सी लव स्टोरी है विदेशी युवक और फिल्म की नायिका शशि(श्रीदेवी) के बीच। सभी ओर से तिरस्कार झेल रही इस महिला की सुंदरता का भान इस विदेशी युवक को होता है। अंत में वो इजहार-ए-मोहब्बत भी करता है। शशि कहती है कि इस उम्र में मुझे प्यार की नहीं, इज्जत की जरूरत है। लगता है कि पूरी फिल्म की स्टोरी इसी एक डॉयलाग के आसपास केंद्रित हो गई है।
फिल्म के अंत में शशि इंग्लिश में अपनी भांजी को विवाह की शुभकामना सार्वजनिक रूप से विवाह स्थल पर देती है। मुझे डायलाग याद नहीं है लेकिन वो कहती है कि किसी भी रिलेशनशिप में बराबरी बहुत जरूरी है। घर ही ऐसी जगह है जहाँ सारी कमजोरी दब जाती है। घर के सारे सदस्य बराबर होते हैं। घर का कमजोर सदस्य भी यह महसूस करता है कि कम से कम यह तो वो जगह है कि उसकी तुलना नहीं की जा रही। सचमुच घर ऐसा ही होता है।
घर लौटने पर मैं भी अक्सर ऐसा ही महसूस करता हूँ। घर के बाहर मैं अपने एपीयरेंस के प्रति चिंतित रहता हूँ। अक्सर मुझे तुलना के तराजु में तोला जाता है। मैं खासा असुरक्षित महसूस करता हूँ क्योंकि लाख चाहने के बाद भी मेरे व्यक्तित्व की बुराइयाँ बाहर झाँकने लगती हैं। घर आते ही मैं सुरक्षित हो जाता हूँ। मैं बुरा हूँ, मेरा एपीयरेंस अच्छा नहीं है। साहस का भी मुझमे अभाव है। शाहरूख या सलमान जैसा आकर्षण नहीं, फिर भी मेरी पत्नी मेरा वैसा ही सम्मान करती है वो मुझे तराजु में नहीं तौलती जो मुझे अच्छा लगता है। मुझमें किसी तरह की कशिश नहीं फिर भी माँ मेरी तारीफ में ढोल बजाए फिरती है। पिता कहते हैं कि कुछ और हेल्दी होता तो हीरो की तरह लगता। सचमुच घर ऐसा ही होता है।
जैसे तारे जमीं पर ने हमें यह सिखाया कि कैसे अपने बच्चों के प्रति व्यवहार रखें, वहीं इंग्लिश विंग्लिश हमें सिखाती है कि कैसे उस माँ का सम्मान करें जिसके आगे-पीछे घर की धुरी घूमती है।
इंग्लिश-विंग्लिश के पहले १० मिनटों में ही जान लिया कि मैं कितना गलत था। एक अधेड़ महिला की पीड़ा को पहली बार रूपहले सिनेमा में जगह दी गई, जिसने घर के लिए अपना पूरा जीवन बिता दिया लेकिन वहाँ ही उसे सम्मान के दो शब्द नहीं मिले। क्लास टीचर के साथ हिंदी में बोलने पर अपनी बिटिया की ओर से अपमान सहना पड़ा। मुझे अपना बचपन याद आता है कि कई बार माँ को बेवजह परेशान किया, सबके सामने बेवजह गुस्सा दिखा उनका अपमान किया। फिल्म में एक छोटी सी लव स्टोरी है विदेशी युवक और फिल्म की नायिका शशि(श्रीदेवी) के बीच। सभी ओर से तिरस्कार झेल रही इस महिला की सुंदरता का भान इस विदेशी युवक को होता है। अंत में वो इजहार-ए-मोहब्बत भी करता है। शशि कहती है कि इस उम्र में मुझे प्यार की नहीं, इज्जत की जरूरत है। लगता है कि पूरी फिल्म की स्टोरी इसी एक डॉयलाग के आसपास केंद्रित हो गई है।
फिल्म के अंत में शशि इंग्लिश में अपनी भांजी को विवाह की शुभकामना सार्वजनिक रूप से विवाह स्थल पर देती है। मुझे डायलाग याद नहीं है लेकिन वो कहती है कि किसी भी रिलेशनशिप में बराबरी बहुत जरूरी है। घर ही ऐसी जगह है जहाँ सारी कमजोरी दब जाती है। घर के सारे सदस्य बराबर होते हैं। घर का कमजोर सदस्य भी यह महसूस करता है कि कम से कम यह तो वो जगह है कि उसकी तुलना नहीं की जा रही। सचमुच घर ऐसा ही होता है।
घर लौटने पर मैं भी अक्सर ऐसा ही महसूस करता हूँ। घर के बाहर मैं अपने एपीयरेंस के प्रति चिंतित रहता हूँ। अक्सर मुझे तुलना के तराजु में तोला जाता है। मैं खासा असुरक्षित महसूस करता हूँ क्योंकि लाख चाहने के बाद भी मेरे व्यक्तित्व की बुराइयाँ बाहर झाँकने लगती हैं। घर आते ही मैं सुरक्षित हो जाता हूँ। मैं बुरा हूँ, मेरा एपीयरेंस अच्छा नहीं है। साहस का भी मुझमे अभाव है। शाहरूख या सलमान जैसा आकर्षण नहीं, फिर भी मेरी पत्नी मेरा वैसा ही सम्मान करती है वो मुझे तराजु में नहीं तौलती जो मुझे अच्छा लगता है। मुझमें किसी तरह की कशिश नहीं फिर भी माँ मेरी तारीफ में ढोल बजाए फिरती है। पिता कहते हैं कि कुछ और हेल्दी होता तो हीरो की तरह लगता। सचमुच घर ऐसा ही होता है।
जैसे तारे जमीं पर ने हमें यह सिखाया कि कैसे अपने बच्चों के प्रति व्यवहार रखें, वहीं इंग्लिश विंग्लिश हमें सिखाती है कि कैसे उस माँ का सम्मान करें जिसके आगे-पीछे घर की धुरी घूमती है।