Monday, December 30, 2013

फारूख शेख का जाना


फारूख शेख को विदा करने का सबसे अच्छा तरीका था उनकी फिल्म साथ-साथ के तीन गाने सुन और देख लेना। तुमको देखा तो ये ख्याल आया, ये तेरा घर और प्यार मुझसे किया तो क्या पाओगी। वो बिना इन किया हुआ शर्ट पहनते थे फिर भी दीप्ति नवल फिल्मों में उन्हें प्यार करती थीं, यह देखकर मुझे आश्चर्य होता था। साथ-साथ तो इस मामले में अद्भुत फिल्म थी, दीप्ति नवल उनके पीछे घूमती रहीं पूरी फिल्म में।
एक पत्रकार के जीवन पर इतनी सुंदर फिल्म बन सकती है यह सोचने से परे है लेकिन यह इसलिए बन पाई क्योंकि इसमें फारूख शेख थे। उनके चेहरे पर एक खास तरह की मासूमियत और ईमानदारी थी, चश्मेबद्दूर में जो शरारती केरेक्टर उन्होंने किया था, मुझे लगता है कि असली फारूख वैसे ही रहे होंगे। उनके जाने के बाद मैंने विकीपीडिया में उनके बारे में पढ़ा। जानकर आश्चर्य हुआ कि उनका एकेडमिक रिकार्ड वैसा ही है जैसा चश्मेबद्दूर के केरेक्टर का जो अर्थशास्त्र की पढ़ाई करता है।
दूरदर्शन पर जीना इसी का नाम है प्रोग्राम में भी फारूख शेख अलग रंग में नजर आते थे, इस कार्यक्रम में देखा हेमा मालिनी का एपिसोड बार-बार याद आता है।
साथ-साथ फिल्म देखने के बाद मैंने दीप्ति नवल के वेब पेज पर कमेंट किया था कि रिश्ते ऊपर वाला बनाता है या नहीं मुझे नहीं मालूम, हो सकता है कि यह काम अपने असिस्टेंट के भरोसे छोड़ देता हो लेकिन आपका और दीप्ति नवल का रिश्ता जरूर ऊपर वाले ने बनाया होगा, यह दैवी संयोग से कहीं अधिक है।