Thursday, December 17, 2015

बस्तर में मृतक स्तंभ



बस्तर की अंदरूनी सड़कों पर अक्सर पेड़ों में डंगालों में कलश मिल जाते हैं पास ही जली हुई चिता की राख और करीब में बैठे परिजन। यहाँ मौत पर स्यापा नहीं होता। जैसा हमारी अदालतों में होता है किसी को मृत्यु दंड देने से पहले पूछ लिया जाता है कि तुम्हारी आखरी इच्छा क्या है फिर संभव हुआ तो उसकी इच्छा पूरी कर दी जाती है ताकि मरते वक्त अपनी एक रुचि पूरी कर सके, उसकी आत्मा का बोझ थोड़ा सा ही सही कम किया जा सके। ऐसे ही यहाँ भी मरने के बाद वैसे ही कृत्य किए जाते हैं जैसे मृतक अपनी जिंदगी में पसंद करता था। अगर वो नृत्य पसंद करता था तो अहर्निश नृत्य प्रस्तुत किया जाता है। अगर उसकी रुचि गीतों में हैं तो गीत प्रस्तुत किए जाते हैं। फिर उसके पसंद का आहार। ऐसा नौ दिन चलता है।
फिर उसकी स्मारक पर एक पत्थर रख दिया जाता है और उसकी पसंद की चीज यहाँ चित्रित कर दी जाती है। पूरे बस्तर में महापाषाणकालीन स्तंभ बिखरे हैं जो बताते हैं कि इसका इतिहास कितना पुराना है। दिल्ली, मुंबई और कोलकाता से बहुत पुराना और ये लोग ऐसे लोग हैं जो तीन हजार साल या उससे भी पहले इसी इलाके में ऐसा ही जीवन जीते आए हैं।
 अपने पूर्वजों की स्मृतियों को सबसे सुंदर तरीके से रखने के लिए उन्होंने काष्ठ स्तंभ बनाए हैं। इन काष्ठ स्तंभों में शिकार के दृश्य हैं। प्रेम के दृश्य हैं और अजीब बात है कि सैकड़ों बरसों में भी यह खराब नहीं हुए हैं। कटेकल्याण रोड में कल ऐसा ही काष्ठ स्तंभ देखकर मैं मुग्ध रह गया। बेहद खूबसूरती से इसमें अंकन किया गया था। पास ही कुछ महापाषाण कब्र थीं और इससे लगी हुई गाटम की बस्ती।
इस धरोहर के लिए पंचायत चिंतित रही होगी, इसलिए अब एक शेड इस पर लगा दिया गया है। लेकिन पुरातत्व की दुश्मन दीमक नाम की प्रजाति ने जैसे संकल्प ले लिया है कि इसे नष्ट करेगी। बीच से यह स्तंभ टूट रहा है शायद पूर्वजों की अंतिम स्मृति कुछ समय बाद इस क्षेत्र से विदा ले लेगी।
क्रमशः



Thursday, December 10, 2015

श्री शैलं टाइगर रिजर्व एवं हैदराबाद



 

 यह भारत का सबसे बड़ा टाइगर रिजर्व है। श्री शैलं पहुँचने तक लगभग 60 किमी का रास्ता इस टाइगर रिजर्व में हमने गुजारा। उस दिन बंगाल की खाड़ी में विक्षोभ था और घना कोहरा टाइगर रिजर्व में उतर गया था। मैंने जीवन में पहली बार वो घास के मैदान देखें जिन्हें मीडोज कहा जाता है जो शेर का बसेरा बनते हैं। बाँस के झुरमुट के बीचोंबीच यह घास के मैदान फैले हैं। थोड़ी-थोड़ी दूरी पर कुछ-कुछ पेड़। जैसे घास के मैदान के बीच इन पेड़ों ने लीज में अपनी जमीन ले ली है। जंगल के बीच-बीच पिकनिक के चिन्ह नजर आते हैं। यह इलाका ऐसे लगता है जैसे बरसों से यहाँ मनुष्य की प्रजाति नहीं आई। कुछ हिरण मुझे नजर आए। अगर यहाँ शेर न भी दिखे तो भी जंगल इतना खूबसूरत है कि अपने जीवन में हर व्यक्ति को यहाँ कई बार आने की कोशिश करनी चाहिए।

जैसे शाहजहाँ ने काश्मीर को अपनी तफरीह के लिए चुना, वैसे ही विजयनगर के राजाओं ने भी यहाँ आरामगाह बनाए, निजाम के शिकार के लिए कई आरामगाह भी यहाँ बनाए गए। इस जगह की खूबसूरती को देखकर ही लगता है कि जंगल के राजा ने यहाँ रहने का चुनाव क्यों किया होगा। और जब शिव जी को सपत्नीक आंध्र में रहने की इच्छा पैदा हुई तो उन्होंने यह जगह क्यों चुनी हुई होगी। इस मामले में वो विष्णु जी से कहीं आगे बढ़ गए क्योंकि तिरूमाला की पहाड़ियाँ खूबसूरत होने के बावजूद भी उनमें घास के मैदानों की वैसी कशिश नहीं है जो श्री शैलं में है।

आंध्रप्रदेश की बसों में यात्रियों के लिए टीवी भी लगे हैं। टाइगर रिजर्व खत्म होने पर मैंने तेलुगु सिनेमा का आनंद लिया। तेलुगु सिनेमा में दक्षिण की अलग ही दुनिया नजर आती है। मंदिर के धीर-गंभीर लोगों की तुलना में यहाँ लोग काफी उनमुक्त दिखते हैं और यहीं पर यह सिनेमा भोजपुरी सिनेमा जैसा लगने लगता है।

हैदराबाद पहुँचते हुए शाम हो गई थीं। अब केवल एक साइट ही हम लोग देख सकते थे बिरला मंदिर। हमारे आटो ड्राइवर ने बताया कि यह आदर्श नगर में पड़ता है और बंजारा हिल्स के साथ ही यह भी हैदराबाद की सबसे पॉश लोकैलिटी है। उसने हमें एक पूरा काम्पलेक्स दिखाया जहाँ पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव का परिवार रहता है और वो टेनिस परिसर भी जहाँ सानिया मिर्जा की टेनिस परवान चढ़ी। उसने बताया कि सानिया अक्सर यूके में रहती है और कभी-कभी ही हैदराबाद आती है।

फिर हम बिरला मंदिर गए। इसे ऊँची पहाड़ी में बनाया गया है जहाँ हुसैन सागर झील का सुंदर नजारा दिखता है। वहाँ से हमने नैकलेस रोड को भी देखा जिसकी इज्जत हैदराबाद में मरीन ड्राइव की तरह है।

पापा ने बताया कि बिरला ने अभी नया रायपुर में भी मंदिर के लिए जगह माँगी है दुर्भाग्य से हमारे यहाँ कोई ऊँची पहाड़ी नहीं, फिर भी संतोष इस बात का है कि बिरला परिवार की धार्मिक आस्था बनी हुई है।

जब हम बिरला मंदिर जाने वाले थे, उसी समय दूरदर्शन पर गोवा फिल्म फेस्टिवल की शुरूआत हो रही थी। यह प्रोग्राम इतना अच्छा था कि हमारे साथ आए बड़े पिता जी ने होटल में ही रहकर प्रोग्राम देखने का फैसला किया। प्रोग्राम को होस्ट कर रही थीं अदिती राव। अदिती ने एक सुंदर तेलुगु गाना गाया, उनकी आवाज इतनी मीठी लगी कि मैंने बाद में इंटरनेट में उनके बारे में सर्च किया। उन्होंने रॉकस्टार फिल्म में अभिनय किया था। वो राजघराने से हैं और उनके पिता निजाम के नायक थे। वे किरण राव की बहन हैं जो आमिर खान की पत्नी हैं। इस तरह अदिती के बहाने किरण राव की कुंडली भी हाथ लग गई। मैंने केवल परवीन बाबी के बारे में सुन रखा था कि वे जूनागढ़ परिवार से हैं। इसके बाद मैंने सर्च किया कि कौन सी ऐसी एक्ट्रेस हैं जिनके लिंकेज राजपरिवार से है तो पता चला कि भाग्यश्री भी राजपरिवार से हैं उनके पिता महाराष्ट्र की सांगली रियासत के राजा हैं। प्रोग्राम की जो बात सबसे ज्यादा दिल को छू गई। वो इलैयाराजा को सुनना। इलैयाराजा ने कहा कि म्यूजिक को पूरे देश की पढ़ाई में अनिवार्य कर देना चाहिए। आतंकवाद को खत्म करने का यह बड़ा उपाय हो सकता है क्योंकि संगीत मन को बेहद शांत कर देता है। इलैयाराजा ने यह भी कहा कि मैं भारत का एकमात्र संगीतकार हूँ जो एसेंडिंग नोट्स में म्यूजिक देता है।

अगले दिन हमने गोलकुंडा के किले और सालारजंग म्यूजियम के बजाय रामोजी फिल्म सिटी देखने का फैसला किया।

क्रमशः

 

 

 

श्री शैलं मल्लिकार्जुन यात्रा



 

जब बच्चे में ईश्वर गुणों और अवगुणों का बंटवारा करते हैं तो वे खास मेहनत नहीं करते, कम से कम मेरे मामले में तो उन्होंने बिल्कुल ही मेहनत नहीं की। मेरे अंदर पापा और मम्मी के कुछ गुण और अवगुण पूरी तौर पर उतर आए हैं। जैसे मम्मी को साहित्य में अनुराग है पापा को खास नहीं और मैं साहित्यानुरागी हूँ। मम्मी गहराई से धार्मिक हैं पापा ने कभी ईश्वर के संबंध में गहराई से सोचा भी होगा, मुझे नहीं लगता। मैं भी पापा जैसा ही हूँ। पापा दुनिया देखने को उत्सुक रहते हैं मम्मी को घर में ही अच्छा लगता है। मैं भी दुनिया देखना चाहता हूँ।

 मेरी मम्मी को बहुत आकर्षण था कि हम श्रीशैलं के रूप में एक ऐसी जगह हैं जहाँ शिव जी ज्योतिर्लिंग के रूप में और पार्वती माँ शक्ति पीठ के रूप में विराजित हैं जबकि पापा और मेरा आकर्षण नागार्जुन सागर बाँध का था।

फिर भी जब मैं श्री शैलं के मंदिर पहुँचा तो लगा कि मैं मम्मी के ज्यादा नजदीक हूँ पापा से कुछ ज्यादा धार्मिक हूँ। सुबह हम लोग उठे, एमएस सुब्बुलक्ष्मी विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ कर रही थीं। सुबह वेणी वाले चारों ओर फैल गए थे। महिलाएँ वेणी खरीद रही थीं, कुछ महिलाएँ वेणी लगाकर मंदिर की ओर बढ़ रही थीं। उनके फूलों की खुशबू वातावरण में बिखर गई थी। मुझे वेणी अपने देवता के प्रति उनकी अगाध श्रद्धा का प्रतीक लगी। वे सुवासित होकर, सुंदर दिखकर अपने परिवेश की सुंदरता बढ़ाती हैं। सत्यम शिवं सुंदरं। सुंदरता सुख देती है। मुझे लगता है कि सुंदर दिखने के पीछे स्त्री की संसार को सुखी बनाने की मंगलकामना है। ऐसा सोचने पर मुझे मेरी बेटी याद आती है। वो तीन साल की है नया ड्रेस पहनती है और पूछती है पापा मैं कैसी लग रही हूँ। उत्तर भारत में यह वेणी अनुपस्थित है और इन फूलों के बगैर यहाँ के मंदिरों में आप वैसा धार्मिक बोध नहीं महसूस कर पाएंगे जैसा आप दक्षिण के मंदिरों में करते हैं। यहाँ मंदिर आपके जीवन का नितांत जरूरी हिस्सा है ईश्वर आपसे पृथक नहीं, आपके बिल्कुल करीब है।

यह मंदिर रेड्डी राजाओं ने बनाया था जो कृष्णदेवराय के समकालीन थें। मंदिर के चारों ओर परकोटा बना है और चारों ओर मूर्तियों का अंकन हुआ है। यह अजंता की तरह की गैलरी है। दुर्भाग्य यह है कि यहाँ धार्मिक लोग आते हैं जिन्हें इतिहास से सरोकार नहीं और इतिहासकार इसलिए नहीं आते क्योंकि यह एक धार्मिक जगह है।

परकोटे में हुए अंकन में कुछ पशुओं से संबंधित भी हैं। यह पशु बहुत विचित्र हैं कुछ चीनी ड्रैगन जैसे लगते हैं शिकार के प्रसंगों का बहुत सुंदर अंकन हुआ है। यह संयोग नहीं है क्योंकि यह पूरा क्षेत्र टाइगर रिजर्व है।

पूर्वी घाट यहाँ सबसे सुंदर रूप में मौजूद है। ऊँचे पर्वत पर बसा श्री शैलं और नीचे घाटियों से नजर आती कृष्णा नदी यात्रियों को अपूर्व आनंद से भर देती है। सबसे निचली जगह है पाताल गंगा। बताते हैं कि जब कलियुग आने वाला था तब साऊथ के ऋषि—मुनि यहीं कृष्णा नदी में प्रवेश कर गए और फिर पाताल लोक से निकल कर गंगा जी से होते हुए स्वर्ग में पहुँचे। इस सेफ पैसेज की महत्वता को देखते हुए देवराय द्वितीय की पत्नी ने यहाँ सीढ़ियाँ लगाई थीं।

धार्मिक क्षेत्र में आपका ज्ञान आपके स्वर्ग और मोक्ष के रास्ते तैयार करता है। श्री शैलं आने के बाद मुझे मालूम हुआ कि काशी में सात जन्म लेकर जीवन गुजारने के बराबर का पुण्य श्री शैलं में भगवान मल्लिकार्जुन के दर्शन से हो जाता है।

क्रमशः