Wednesday, August 26, 2015

इंतजार हुसैन और जातक कथाएँ


मैं इंतजार हुसैन साहब का शुक्रिया अदा करना चाहता हूँ। उन्हें पाकिस्तान में लिविंग लिजेंड कहा जाता है। इस बार किताबों की दुकान में उनकी कहानी संग्रह कछुए दिखी जिसे मैंने खरीद लिया। इसका नाम आश्चर्य पैदा करता है कछुए और किताब पढ़ने पर शीर्षक से उपजा विस्मय एक नई दुनिया के नजारे आपके लिए खोल देता है।
बचपन में एक कहानी पढ़ी थी एक सरोवर में कछुआ रहता था, उसके दोस्त हंस सर्दियां गुजारने उसके पास आते थे। एक बार जब सरोवर का पानी सूखने लगा तो हंसों ने उसे आफर दिया कि हमारे साथ हिमालय चलो। तुम्हें यह करना है कि डंडी मुँह में रखना है और डंडी के दोनों छोर हम लोग संभाल लेंगे। बस तुम कुछ बोलना नहीं, नहीं तो सारी मेहनत धरी की धरी रह जाएगी। कछुवे का इस तरह मौनी बाबा बने रहना लोगों को रास नहीं आया और लोग हँसने लगे। कछुए ने आक्रोशित होकर बोलना शुरू किया और आसमान से गिर कर सीधा राजा की महल के छत पर गिरा।
यह कहानी और ऐसी ही अन्य कहानियाँ बिल्कुल अलग ढंग से इंतजार हुसैन ने लिखी। उन्हें पढ़कर समझ आया कि इन कहानियों का जो एक सादा अर्थ है उसके भीतर भी एक अर्थ छिपा है।
इंतजार हुसैन ने जातक कहानियों के माध्यम से उस दुनिया की बात बताई जहाँ इंसान केंद्र में नहीं था। पशु-पक्षी सब उस दुनिया में बराबरी से शेयर करते हैं। कहानियाँ उन पर लिखी जाती थीं। बुद्ध पिछले जन्मों में कई योनियों में थे। कभी बंदर और कभी कुत्ते के रूप में। हर बार विलक्षण। विशेष रूप से बनारस में बुद्ध के किस्से क्लासिक हैं शायद प्रेमचंद के अलावा आदमियों के बारे में लिखने वाला कोई कहानीकार इन कहानियों की बराबरी नहीं कर सकता।
इंतजार हुसैन की जातक कथाएँ भिक्षुओं के द्वंद्व पर भी रोशनी डालती हैं। भिक्षु जब द्वार-द्वार भिक्षा माँगने जाते तो सुंदर लड़कियाँ उन्हें भिक्षा देने देहरी तक आतीं। वे उनके पैर देखते जो उन्हें कमल की तरह लगते। फिर एक अजीब सी तृष्णा की शुरुआत होती। कई बार तो संकट में बुद्ध को हस्तक्षेप करना पड़ता और वे भिक्षुओं को उबार लेते।
मैंने इतना सुख और इतनी गहराई से भरा लेखन बहुत लंबे समय बाद पढ़ा। इससे पहले शेखर एक जीवनी पढ़कर ऐसा ही आनंद मुझे मिला था।
अपनी किताब का अंत इंतजार हुसैन ने एक खत के साथ किया है जिसका शीर्षक है नये अफसानानिगार बलराज मेनरा के नाम खत। उन दिनों इंतजार पर आरोप लगे कि वे गुजरे जमाने में रहते हैं और उनकी कहानी हकीकत से दूर अतीत की गलियों में भटकती है। इंतजार ने बड़े फक्र से कहा कि बलराज मैं तुम्हारे मामूली से आज की खातिर अपने मित्र सोमदेव से कैसे दोस्ती तोड़ लूँ। मेरे लिए तो आग का दरिया भी वैसा ही जैसे कथासरितसागर।
इंतजार साहब की तारीफ के बाद मैंने कथासरितसागर के बारे में ज्यादा जानने के लिए विकीपीडिया में सर्च किया। कथासरितसागर मूलतः सोमदेव ने लिखी थी जो कश्मीर के राजा अनंतवर्मन ने अपनी पत्नी रानी सूर्यमती के मनोरंजन के लिए लिखवाई थी। यह रचना मूलतः गुणाढ्य द्वारा लिखी गई वृहतकथा पर आधारित थी।
फिर गुणाढ्य की वृहतकथा को भी खोजा। इसमें एक सुंदर कहानी मुझे मिली जो अनायास ही मुझमें कौंधने लगती है। गुणाढ्य ने अपनी पुस्तक वृहतकथा पैशाची भाषा में लिखी, जब वे इसे सातवाहन राजा के पास लेकर गए तो राजा ने इसे पढ़ने से इंकार कर दिया। गुणाढ्य इतने दुखी हुए कि जंगल चले गए, आग लगाई और सस्वर पाठ कर एक-एक पन्ना जलाने लगे। उनका पाठ इतना ओजस्वी और रुचिकर था कि सारे पशु-पक्षी वहाँ आकर इसे सुनने लगे। उस समय राजा शिकार करने जंगल आया हुआ था उसे आश्चर्य हुआ कि सारे पशु-पक्षी कहाँ चले गए। फिर उसे गुणाढ्य का पाठ सुनने मिला। वो चकित रह गया और गुणाढ्य से माफी माँगी।
 इंतजार हुसैन साहब निर्मल वर्मा स्मृति व्याख्यान माला में शामिल हुए थे और वहाँ उन्होंने उपनिषद की एक कहानी बताई थी। इसमें एक गुरु ने अपने शिष्य को शिक्षा देने के बजाय कहा कि जाओ जंगल चले जाओ और वहाँ शिष्य ने प्रकृति से शिक्षा ली। पशुओं से सीख ली, पक्षियों से सीख ली। उसे पूर्ण ज्ञान प्राप्त हुआ।