Friday, September 18, 2015

वो कुत्ता स्पेशल था.........



उन दिनों मैं खूब पैदल चला करता था और अपनी चरम बेरोजगारी में हर संभव उपाय से पैसे बचा लेता था। दुनिया का बेहद कम अनुभव था। एक बार नागपुर जाना हुआ, बैंक पीओ का पेपर था। एक्जाम हाल में दस मिनट के संघर्ष के बाद ही मैंने हार मान ली। फिर किफायत से रहने का संकल्प दृढ़ किया। रात को जब दो बजे रायपुर आने की आहट हुई तो मैंने सोचा कि आयुर्वेदिक कॉलेज के पास उतर जाऊँगा और वहाँ से पंद्रह मिनट में घर पहुँच जाऊँगा। मुझे नहीं मालूम था कि इस तरह अकेले जाने में भयंकर संकट से मुझे गुजरना पड़ेगा।

 जब मैं डंगनिया तालाब के पास पहुँचने वाला था मैंने सुना कि दस-बीस कुत्तों के भौंकने की आवाज आ रही है। फिर अलग-अलग दिशा से वे इकट्ठे होने लगे। मैंने शिकारी कुत्तों के बारे में कहानियों में सुना था, अब इनका प्रत्यक्ष अनुभव था। मैंने सोचा कि इनका सामना करने का कोई फायदा नहीं है। समर्पण से ही जिंदगी बच सकती है। मैं अंदरूनी डर और बाहरी दृढ़ता से आगे बढ़ता रहा।

फिर मैंने अद्भुत दृश्य देखा। फोर्स की तरह कुत्तों ने मुझे घेर लिया। रणनीतिक रूप से उन्होंने चक्रव्यूह तैयार किया था। सबसे दूरी पर लगभग २० कुत्ते थे जिन्होंने बाहरी सुरक्षा घेरा बनाया था। फिर १० कुत्ते दूसरे घेरे में थे। ये बिल्कुल प्रधानमंत्री की तरह का सुरक्षा घेरा था। बाहर में सीआरपीएफ, फिर अंदर में स्टेट पुलिस। इसके बाद चार कुत्ते जो काफी बलिष्ठ थे। आगे आए और उन्होंने चारों ओर से मुझे घेर लिया। मैं ठिठक कर रह गया। संभवतः ये उनकी एसपीजी सुरक्षा टुकड़ी थी, सबसे मुस्तैद। आक्रमण आसन्न था लेकिन मुझे थोड़ा आश्चर्य हुआ कि वो वेट कर रहे थे। लगभग एक मिनट बाद एक काला कुत्ता आया। उसकी शानदार पर्सनैलिटी थी। वो आम कुत्तों से डेढ़ गुनी हाइट का था और पूरी तौर पर फिट था। ऐसा लग रहा था कि कि पुलिस का कोई डीजी रैंक का कुत्ता भाग गया हो और इन कुत्तों का लीडर बन गया हो।

वो कुत्ता आया, उसने आधे मिनट मुझे चेक किया। चेकिंग पूरी गरिमा से की, दूसरे कुत्तों की तरह चढ़ा नहीं और न ही इस प्रकार चेकिंग की कि किसी प्रकार से क्लाइंट को गुदगुदी हो। चेकिंग पूरी करने के बाद वो पूरे सम्मान से पीछे हटा। उसके हाव-भाव से ऐसा लगा कि उसने मुझसे खेद प्रकट किया हो और कह रहा हो कि सॉरी, बट ये रूटीन चेकअप है जो सिक्युरिटी के लिए जरूरी होता है। जब वो पीछे हटा तो सारे कुत्ते छंट गए।

मुझे लगा कि वो कुत्तों का कॉप था। पुलिस चीफ की तरह उसने गरिमापूर्ण बरताव किया। जब अमेरिका में राष्ट्रपति कलाम के साथ एयरपोर्ट में दुर्व्यवहार हुआ तो मुझे उस कुत्ते की याद आई। संभवतः वो पिछले जन्म में पोरस था जिसने सिकंदर को सीख थी कि उसे वैसा ही सुलूक करना चाहिए जैसा एक राजा दूसरे राजा के साथ करता है। समस्त शक्तियाँ होने के बावजूद उसने पॉवर का मिसयूज नहीं किया और न ही होने दिया।

लेकिन हमेशा ऐसा नहीं होता, छोटे शहरों के कुत्ते और महानगरों के कुत्तों में बड़ा फर्क होता है। रामेंद्र ने मुझे बैंगलोर का दिलचस्प वाकया बताया। एक रात वो ऐसे ही बैंगलोर की एक सूनी सड़क से लौट रहा था। चारों ओर कुत्तों ने घेर लिया। वहाँ के कुत्ते बेहद माँसाहारी है और उन्हें एक जीता-जागता आदमी मिल गया था। वे हमले के लिए पूरी तौर पर तैयार ही थे कि इतने में कॉल सेंटर की एक बस गुजरी जिसने रामेंद्र को लिफ्ट दी।

संवेदनशील कुत्तों में सबसे बड़ा नाम मैं साधू कुत्ते का रखता हूँ। साधू कुत्ते की कहानी मुझे आकाश ने बताई। जगदलपुर के एक परिवार में साधू कुत्ते का जन्म गुरु पूर्णिमा के अवसर पर हुआ। यह परिवार को महज संयोग जान पड़ा। आश्चर्य तब हुआ कि जब इस पूरे माँसाहारी परिवार में जिसमें केवल दादी शाकाहारी थी, इस कुत्ते ने माँसाहार को छूने से इंकार कर दिया। उसके बाल धवल थे और दादी ने इसे साधू कुत्ता कह दिया। यथा नाम तथा गुण के तर्ज पर साधू कुत्ता एकादशी के अवसर पर कुछ नहीं खाता था क्योंकि दादी भी उपवास रखती थी। वो दादी के खाना खाने पर ही खाता था। दादी के पूजा करने पर वो दोनों पैरों को बढ़ाकर पूजा घर में बैठ जाता और तब तक बैठा रहता जब तक पूजा संपन्न नहीं हो जाती थी। वो बहुत पुण्यात्मा था, उसका निधन एकादशी के दिन हुआ। परिवार ने उसकी तेरहवीं पर तेरह ब्राह्मणों को भोज कराया।

इन दिनों पर रायपुर नगर निगम में कुत्तों पर बेतहाशा संकट आया है। वे वंशवृद्धि नहीं कर पा रहे। उन्हें अपने मादरेवतन से दूर भेजा जा रहा है। ऐसे में एक दिलचस्प किस्सा अनुभव का बताया हुआ याद आता है। सुंदर नगर में उनके घर के सामने एक बड़ा ही बदतमीज कुत्ता रहता था। उसने लोगों के नाक में दम कर रखा था। आखिर में शिकायत हुई और इस कुत्ते को जिला बदर कर दिया गया। निलंबन अवधि में उसका मुख्यालय तय किया गया कुम्हारी। आश्चर्य तब हुआ जब दो दिन बाद वो पुनः प्रकट हो गया, सुंदर नगर में। उसकी यात्रा बजरंगी भाईजान की तरह सुखद नहीं थी, वो साथ में लाया था बहुत सारे जख्म। फिर वो बहुत दिन जिंदा नहीं रहा। शायद उसे काबुलीवाला में गुलजार द्वारा लिखा वो गीत बहुत भा गया। तेरे जर्रों से जो आए, उन हवाओं को सलाम। हम जहाँ पैदा हुए, उस जगह ही निकले जान। ऐ मेरे प्यारे वचन, तुझपे दिल कुर्बान।

बचपन में हम लोगों के घर के पास एक कुत्ता रहता था झबरू। वो बहुत दिलेर और प्यारा था। जब तक वो जिंदा रहा, उसका जीवन दाऊद और छोटा राजन की तरह संघर्षपूर्ण रहा। गैंगवार में उसका प्रतिद्वंद्वी था एक काले रंग का कुत्ता जिसमें बीच-बीच में सफेद स्पॉट थे। गैंगवार के आखरी चरण में झबरू पराजित हुआ। हम लोगों ने कुकुर समाधि कहानी पढ़ी थी। उसके कब्र में फूल चढ़ाए। उसका प्रतिद्वंद्वी जो जीता, उसने कमाल किया। उसकी काफी वंशवृद्धि हुई। सुंदर नगर से लाखे नगर तक अधिकाँश कुत्ते ब्लैक और व्हाइट स्पॉट वाले हैं जिससे यकीन होता है कि वो कुत्ता इनका पितृपुरुष रहा होगा।

इतनी सारी कहानी इसलिए याद आई कि मैं इन दिनों दो हफ्ते में एक बार रायपुर आता हूँ और एक काले कुत्ते से मेरा सामना होता है जो आटो के पहुँचते ही भौंकना शुरू कर देता है लेकिन मुझे देखकर शांत हो जाता है। मेरा घर इस कुत्ते को खाना नहीं देता लेकिन वो भेदभाव नहीं करता और सबको सुरक्षा देता है।