Friday, August 27, 2010

दिल्ली के सिपाही की सक्रियता राज्य भाजपा के लिये खतरे का सबब

मैं दिल्ली में आपका सिपाही हूं। कालाहांडी की सभा में कांग्रेस के युवराज ने जब आदिवासी जनता से यह आश्वस्त करने वाला वाक्य कहा तो इसके गहरे मायने थे। गहरे मायने न केवल उड़ीसा की आदिवासी जनता के लिये थे अपितु परोक्ष रूप से उन्होंने आदिवासी वोट बैंक का आह्वान किया। दरअसल राहुल गांधी मिशन 2014 की तैयारी कर रहे हैं और इसके लिये वह कांग्रेस के सबसे परंपरागत वोटबैंक को खुश करने में जुटे हैं। वेदांता की नियामगिरी खदान में पर्यावरण मंत्रालय द्वारा लाल निशान दिखाये जाने के बाद राहुल आदिवासी समुदाय से मिले और साबित किया की जंगल और जमीन की सुरक्षा करना सरकार की जिम्मेदारी है। दरअसल राहुल यह जानते हैं कि आदिवासी क्षेत्रों में बढ़त बनाये बिना 2014 में जनादेश प्राप्त करना आसान नहीं होगा। तेजी से बढ़ते जा रहे औद्योगीकरण के चलते आदिवासी क्षेत्रों में जंगल और जमीन को बड़ा खतरा उपस्थित हुआ है और इसके चलते स्थानीय नागरिक जिनमें बहुसंख्यक आदिवासी हैं सरकारी नीतियों के खिलाफ आ गये हैं। ऐसे में राहुल गांधी आदिवासी जनता को आश्वस्त करना चाहते हैं कि उनकी जमीन सुरक्षित रहेगी। जिस प्रकार प्रियंका, स्वयं को अपनी दादी इंदिरा गांधी जैसा दिखाना पसंद करती हैं उसी तर्ज पर राहुल भी अपने पिता की राह पर बढ़ते हुए दिख रहे हैं। राजीव ने आदिवासी क्षेत्रों में गहरी दिलचस्पी ली थी, उनका परंपरागत रूप से माडिय़ा आदिवासियों की वेषभूषा में सजा चेहरा अब भी बस्तर के लोगों के जेहन में है। राजीव के जाने के बाद कांग्रेस का यह परंपरागत वोट बैंक बरकरार नहीं रह पाया और इस बार के चुनावों में भी आदिवासी क्षेत्रों में कांग्रेस को परंपरागत सफलता नहीं मिली। राहुल के लिये इस बार यह वोटबैंक अहम है क्योंकि शहरी मध्यवर्ग में महंगाई डायन का आतंक इतना अधिक है कि कब वोट फिसल कर भाजपा की ओर चलें जायें, कहां नहीं जा सकता। मिशन 2014 राहुल के लिये अहम है वह इसके लिये पूरी तैयारी से अपने पत्ते चल रहे हैं। वह मनमोहन सिंह के लाख आग्रह करने के बाद भी कैबिनेट में जाने को तैयार नहीं हुए। उन्हें इस बात का अंदेशा था कि मनमोहन सिंह अथवा कैबिनेट की सामूहिक त्रुटि के लिये उन्हें भी इसके अंग के रूप में जिम्मेदार ठहराया जायेगा। जब 2014 में राहुल गांधी जनता के बीच जायेंगे तो उनकी छवि ऐसे नेता की होगी जो प्रधानमंत्री के रूप में उनके सपने पूरा करने का हौसला रखता है। छत्तीसगढ़ में पिछली लोकसभा चुनावों में भी राहुल गांधी ने प्रचार किया था इसके बावजूद सभी आरक्षित जनजातीय सीटों पर कांग्रेस हार गई। यहां गौरतलब है कि पिछले चुनाव में राहुल ने वोट मनमोहन सिंह और कांग्रेस पार्टी के लिये मांगे थे। इस बार राहुल अपने लिये वोट मांगेंगे। प्रधानमंत्री पद के लिये दावा करेंगे। इससे स्थिति कांग्रेस के पक्ष में बदल सकती है और आदिवासी क्षेत्रों में कांग्रेस उम्मीदवार भाजपा को कड़ी चुनौती दे सकते हैं। छत्तीसगढ़ के सभी आदिवासी इलाके घने जंगलों में आते हैं और इनके खनिज संसाधन और जमीन पर उद्योगपतियों की नजर हैं। जहां संयंत्र लगे हैं वहां सही तरीके से विस्थापन नहीं हो रहा। प्राकृतिक संसाधनों का दोहन कर उद्योगपति तो करोड़ों कमा रहे हैं लेकिन स्थानीय लोगों की स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं हो रहा। यह स्थिति विस्फोटक है और ऐसे में जो भी नेता इस मामले में जनता के साथ खड़ा होगा, जनता की सहानुभूति उसे मिलेगी ही। इस स्थिति को भाजपा नेता भी महसूस कर पा रहे हैं और उन्होंने अपना स्टैंड बनाना शुरू कर दिया है। सांसद दिलीप सिंह जूदेव ने साफ कह दिया कि उनके क्षेत्र में किसी भी कोल ब्लाक के लिये जंगल काटने नहीं दिये जायेंगे। फिलहाल जनजातीय क्षेत्रों में दो बार से भाजपा सांसद चुने जा रहे हैं। अगर राहुल की सक्रियता उड़ीसा से आगे बढ़ते हुए छत्तीसगढ़ के संकटग्रस्त इलाकों में पहुंच गई तो वह निवर्तमान भाजपा सासंदों के लिये गंभीर खतरा उपस्थित कर सकते हैं।

Monday, August 16, 2010

छत्तीसगढ़ और जगन्नाथ जी की रथ यात्रा

हर साल जगन्नाथ जी बीमार पड़ते हैं और अपनी मौसी के घर गुंडीचा मंदिर जाते हैं पुरी में यह भव्य समारोह होता है। रायपुर में भले ही हमें भव्य रथ यात्रा देखने को नहीं मिले लेकिन यात्रा को लेकर भक्तों के मन में उतना ही उत्साह होता है जितना पुरी के राजमार्ग में देखने को मिलता है। प्रभु जगन्नाथ के साथ छत्तीसगढ़ के निवासियों का वैसा ही जुड़ाव है जैसे उड़ीसा और बंगाल के एक विशाल वर्ग का। हमारे मंदिरों की पूजा प्रणाली भी बिल्कुल इसी प्रकार हैं। राजिम में राजीव लोचन मंदिर के प्रांगण में जायें। यहां राजीव लोचन वैसे ही नटखट हैं जैसा कि जगन्नाथ जी हैं। उनके अपने नियम हैं गर्मियों में अलग समय में भक्तजनों को दर्शन देते हैं सर्दियों में उनके पट अलग समय में खुलते हैं। सुबह वह बालक के रूप में, दोपहर को किशोर और शाम को युवा के रूप में नजर आते हैं। सबसे रोचक उनका प्रसाद है। सुबह से ही भोग भात उन्हें लगता है अगर आप सुबह राजीव लोचन मंदिर पहुंच जायें तो आपको इस भोग को ग्रहण करने का अवसर मिलेगा। यह बिल्कुल ऐसा ही है जैसे आप पुरी के महान मंदिर प्रांगण में भोग भात ग्रहण कर रहे हों। यही वजह है कि राजीव लोचन मंदिर के बिल्कुल बगल से ही जगन्नाथ जी का मंदिर भी है। बात अगर रायपुर की करें तो छोटे-छोटे रथों में जगन्नाथ जी निकलते हैं। उनके भक्त पूरी श्रद्धा से उन्हें नगर के मुख्य मार्गों से गुजारते हैं। पूरा शहर इनका आशीर्वाद लेने और प्रसाद लेने उमड़ पड़ता है। पिछले साल रथयात्रा के दौरान मुझे कुछ विलक्षण अनुभव हुए। मैंने रथयात्रा को नगर के प्रमुख मार्गों से होकर गुजरते देखा। हर जगह श्रद्धालु भक्तों ने जगन्नाथ जी को घेरा लेकिन जहां भक्त सबसे ज्यादा भाव-विभोर हुए, वह शहर की एक सबसे गंदी बस्ती थी। मुझे लगा कि इन लोगों को हमेशा से जगन्नाथ जी से दूर रखा गया है और बरसों तक यह बरस में केवल एक बार जगन्नाथ जी के दर्शन ही कर पाये। अब छूआछूत खत्म हुआ है और देवता से संपर्क बढ़ा है अब यह लोग ईश्वर के बहुत करीब आए हैं। इनमें से बहुतों को मैंने आंखें मूंदे हुए प्रार्थना करते देखा। 
  जहां तक छत्तीसगढ़ में जगन्नाथ जी की पूजा की परंपरा है। श्रद्धालु भक्त लंबे अरसे से यहां की तीर्थ यात्रा करते रहे हैं। छत्तीसगढ़ में इसके प्रतीक चिह्न अब भी हैं। बताया जाता है कि बुढ़ेश्वर मंदिर से पुरी की तीर्थ यात्रा शुरू होती थी। रायपुर में इसके लिये खास तरह के पंडे होते थे जिनका निवास तेलीबांधा तालाब के पास था। यह भक्तों को पुरी ले जाते थे, वहां इनके परिजन पहले ही मौजूद होते थे जहां भक्त इनकी धर्मशालाओं में ठहरते थे। अब जब पैदल तीर्थ यात्राओं का चलन समाप्त हो गया तब इन्होंने भी अपने को समय के अनुसार बदला है। अब यह बस से पुरी की यात्रा कराते हैं।
  पुराने दौर के लोगों के पुरी तीर्थ यात्रा के किस्से दिलचस्प होते थे। गांव से तीर्थ यात्रियों के दल बैलगाड़ियों में निकलते थे। पुरी पहुंचते तक महीने भर से अधिक का समय लगता था। फिर पुरी में एक सप्ताह से भी अधिक समय तक रूकना होता था और वापसी। इन यात्राओं में जोखिम भी बहुत होता था। एक बार ऐसी ही यात्रा में एक बड़ा हादसा हुआ था जो पुराने लोगों की जेहन में अब भी ताजा है। बताया जाता है कि अंगुल के पास एक प्रसिद्ध संत आये थे जिनके संबंध में यह प्रसिद्ध हो गया था कि वह अच्छी भविष्यवाणी करते थे। उनके आश्रम में महामारी फैली और सैकड़ों लोग इसका शिकार हुए। मरने वालों में बहुत से छत्तीसगढ़ के भक्त भी थे। पुरी की कथाएं अब भी पुराने लोगों को मालूम है और जगन्नाथ जी जितने उड़ीसा के हैं उतने ही छत्तीसगढ़ के भी।