Friday, October 7, 2022

अंजना मैडम

 


क्लास आठवीं की बात है। हमारी क्लास टीचर थीं अंजना थिटे मैडम, पहला पीरिएड विज्ञान का होता था। वो बहुत मेहनत कर पढ़ाती थीं। सबको नाम से जानती थीं जो टीचर्स के लिए दुर्लभ गुण होता है। बहुत सी कक्षाओं में भेड़ों और लड़कों के बीच अंतर ही नहीं होता, टीचर चरवाहे की तरह होते हैं और बच्चे भेड़ की तरह। स्कूल भेड़चाल में चलता रहता है। स्कूल में कक्षाएं आनंद की जगह भी हो सकती हैं यह मुझे नहीं मालूम था। थिटे मैडम इतना अच्छा पढ़ातीं कि अमीबा और पैरामीशियम जैसे अति बोरिंग तत्वों में भी जान फूंक देतीं। क्लास टीचर थीं इसलिए दूसरी कक्षाओं में हम लोगों के प्रदर्शन पर भी नजर रखतीं। विज्ञान के बाद और दूसरी क्लास बोरिंग होती थीं। बीच में रिसेस का सुख मिलता था। स्कूल के बीच बड़ा आंगन था जिसमें हम लोग हेलीकाप्टर कीड़े को पकड़ते थे। रोज सात-आठ हेलीकाप्टर कीड़े पकड़ते थे। उन लोगों को धागे में बांधते थे और क्लास में उड़ा देते थे। कुछ शोषक प्रकृति के लड़के उनसे कंकड़ उठवाते थे। बहुत सुंदर समय था, यह सब इतिहास की क्लास में होता था। इतिहास के सर जल्दी-जल्दी बोलकर क्लास खत्म कर देते थे, कुछ समझ नहीं आता था लेकिन समझ नहीं आने पर भी कोई समस्या नहीं थी। फिर छमाही परीक्षा हुई, कुछ पेपर अच्छे बनते थे कुछ खराब। अच्छे पेपर में यह देखना होता था कि अंधों के बीच में कौन काना राजा बना है और बुरे पेपर में यह कि शून्य से हमारा स्तर कितना उठ पाया है।

          रिजल्ट को लेकर बहुत जिज्ञासा होती थी लेकिन टीचर बहुत देर से चेक करते। उनके लिए यह बोरिंग काम था। मैडम सबसे जल्दी रिजल्ट दे देती थीं। जब इतिहास का रिजल्ट आया तो सही-सही उत्तर लिखने के बाद  भी सबके नंबर कट गये। पांच में से पांच किसी भी प्रश्न में नहीं मिला। सर ने कहा कि आर्ट्स के सब्जेक्ट में पूरे नंबर नहीं दिये जाते। यह बिल्कुल नई बात थी, सर भी अपनी जगह पर सही थे क्योंकि यूनिवर्सिटी में भी ऐसा ही होता है। हम लोगों ने शिकायत थिटे मैडम से की। उन्होंने कहा कि आप लोग सही कह रहे हो क्योंकि उत्तर भी सर ने ही लिखवाये हैं इसलिए रटे हुए उत्तर में नंबर काटना सही नहीं है। मामला प्रिंसिपल सर तक पहुंचा। उन्होंने अंततः नाराजगी मैडम पर जताई  क्योंकि बच्चों के सामने आकर टीचर का विरोध करने पर अनुशासन के बिगड़ने का खतरा था।

              उसके बाद मैडम पहले जैसी नहीं रहीं। वे पढ़ातीं थीं लेकिन उनका उत्साह ढल चुका था। शायद काफी वक्त उन्हें टीचर्स रूम में अपने सहयोगियों के साथ बिताना पड़ता था जो स्वाभाविक रूप से इस बात से असंतुष्ट थे