Friday, November 21, 2014

बनारस यात्रा 2


 गौदोलिया से वाराणसी की पुरानी और भव्य इमारतें देखते हुए भदोही के वो शख्स याद आए जो ट्रेन में बगल की सीट पर बैठे थे। उन्होंने अपनी जिंदगी का बड़ा हिस्सा मुंबई में गुजारा था और इंटीरियर पर काफी काम किया था। वे फिल्मीस्तान स्टूडियो में रहते थे और कई फिल्म स्टार के बंगलों में इंटीरियर के लिए निरीक्षण करने अपने कंपनी के प्रतिनिधिमंडल के साथ गए थे। उन्होंने बताया कि बंगलों में पाली हिल का दिलीप कुमार का बंगला बेमिसाल है। राजकपूर और अमिताभ बच्चन के बंगले की भी उन्होंने प्रशंसा की। उन्होंने बताया कि बाहर से ये बंगले बड़े पुराने लगते हैं जैसे सालों पहले इन्हें बनवाया गया हो लेकिन अंदर से बेमिसाल। सारी सुविधाएँ इनमें मौजूद होती हैं। इनका इंटीरियर शानदार होता है। उन्होंने बताया कि वैसे अब बंगले का क्रेज समाप्त हो चला है अब फिल्म स्टार पूरा फ्लोर बुक करा लेते हैं।
                                                                                                                    जैसे मुंबई में बंगला युग समाप्त हो रहा है वैसे ही वाराणसी में भी इसकी शुरूआत हो रही है। पुरानी इमारतों की जगह नये होटल्स आ रहे हैं उनका स्थापत्य पुराने शहर के स्थापत्य से बिल्कुल मैच नहीं खाता। वे रेशम में पैबंद की तरह लगते हैं लेकिन नई पीढ़ी को ज्यादा सुविधायुक्त भवन चाहिएँ। ऐसे में ट्रेन वाले महोदय मुझे गोदोलिया में याद आए, वाराणसी की इमारतें वैसे ही यथावत रहें अपने मूल स्वरूप में। उनमें अंदर से बदलाव किए जा सकते हैं। इस शहर को मरने से बचाने के लिए मोदी सरकार अगर यह करती है बहुत अच्छा होगा नहीं तो बनारस क्योटो तो बन जाएगा लेकिन उसकी आत्मा खो जाएगी।
                                                                मैदागिन से मैं राजघाट पहुँचा, इच्छा थी कृष्णमूर्ति आश्रम देखने की लेकिन सौभाग्य नहीं मिला। यहीं पर बैठकर कभी निर्मल वर्मा ने लिखा था। यहाँ से पत्थर की बेंच पर बैठता हूँ तो केवल गंगा नजर आती है हजारों साल की स्मृति धूप में खिली, खिलती हुई। हवा चलने पर आखरी साँस में अटके पत्ते भी गंगा में बह जाते हैं। शायद मृत्यु भी इसी तरह शांत झोंके की तरह आती हो लेकिन बताने वाला हमेशा के लिए काल सरिता में बह जाता है।
              बनारस घूमाने शिव जी ने दूसरे शख्स को आटोचालक के रूप में भेजा। वो बनारस की प्रतिभा का प्रतिनिधि उदाहरण मुझे लगा। आटोचालक की लंबी दाढ़ी थी, उसने रामनामी गमछा डाला हुआ था और कंधे भर रूद्राक्ष पहनी थी। उसमें प्रवचनकर्ता के सारे गुण मौजूद थे। उसने कहा कि आपकी सरकार तीर्थ यात्रा योजना चला रही है इससे हमारी सरकार ने भी प्रेरणा ग्रहण की है। मैंने पूछा कि मोदी के आने से बदलाव आएगा क्या। उसने कहा कि दो साल में बदलाव दिखेंगे। इसके पहले जितने नेता आए, सबने देश को लूटा। केजरीवाल के बारे में पूछने पर उसने दिलचस्प टिप्पणी की। वो तो इससे भी (मोदी) तेज है लेकिन उसकी मति फिर गई और दिल्ली की गद्दी छोड़ दी। मैंने पूछा कि बनारस के आदमी इतने अच्छे क्यों है। उसने पुरानी हरिश्चंद्र की कथा बताई। उसका अंदाज बहुत अद्भुत था, वो बार-बार कहता था कि आदमी की परछाई उससे कहाँ छूटती है वैसे ही हरिश्चंद्र का सत्य है जो बनारस में छूट गया। बीच में एक गंदा नाला नजर आया, मैंने पूछा कि क्या शहर भर का कचरा इसी जगह डाला जाता है उसने बताया कि दरअसल यह पुराने जमाने में नदी थी जिसका नाम था वरूणा। एक तरफ वरूणा, दूसरी तरफ असी। दोनों मिलकर वाराणसी बनाते हैं। अब दोनों बड़े गंदे नाले के रूप में बदल चुके हैं।
शायद इन्हीं दोनों नदियों के मिलन ने गंगा की इस जगह को काफी पवित्र बनाया हो। बनारस गुजर गया है लेकिन अब भी पंत की नौकाविहार कविता की पंक्तियां मन में बार-बार अनायास आ रही हैं। सैकत शैया पर दुग्ध धवल, तन्वंगी गंगा ग्रीष्म विरल, लेटी है श्रांत क्लांत निश्चल, तापसबाला गंगा निर्मल।



Thursday, November 20, 2014

बनारस यात्रा 1


 बनारस में नौका विहार करने के दौरान दो तरह के दिलचस्प यात्रियों के आगमन का वर्णन नाविक की जुबानी मिला। पहला नीता अंबानी का जिन्होंने अपना जन्मदिन इस बार बनारस में मनाया, उनके साथ 65 लोगों का स्टाफ आया, वे ताज इन और रेडिसन में ठहरे थे। किराया था 55 हजार रुपए-एक दिन। फिर राजे-रजवाड़ों का जिक्र आया। होल्कर, पेशवा, सिंधिया, राणा, कछवाहा, दरभंगा, नेपाल के ललिता। इन सबने गंगा किनारे घाट बनाए। पूछा क्या अब आते हैं रजवाड़े, नाविक ने कहा, नहीं इन्होंने बनारस छोड़ दिया। अब इन पर बड़े होटल्स हैं। दरभंगा का घाट अभी हाल ही में बिका, 140 करोड़ रुपए में। नाविक से पूछा कितना कमाते हो, बताया कि हर दिन दस हजार रुपए की कमाई हो जाती है। दशाश्वमेध घाट के पीछे पुरखों का घर है। उसके चेहरे पर संतोष का गहरा भाव था। जैसे शिव की नगरी में हर दिन हजारों लोगों को पुण्य यात्रा करा रहा हो।
 नौका विहार दशाश्वमेध घाट से अर्थात प्राचीन रूद्र सरोवर से शुरू हुआ। फिर एक खूबसूरत अनुभव में यह सफर बदलता गया। नदी से इतना सुंदर दृश्य और इतनी सुंदर पटकथा मैंने कभी किसी श्रीमुख से नहीं सुनी थी। जितनी मल्लाह ने बताई। देखिए ये बचुआ पांडेय घाट है पंडों का घाट, इधर नारद घाट कभी इसमें पति-पत्नी मिलकर न नहाएँ, नहीं तो लड़ाई तय है। यह श्रीमंत पेशवा का घाट है संभवतः कभी ऐसे ही स्नान के दौरान मोरोपंत ने पेशवा से रानी लक्ष्मी बाई को मिलाया हो। राजा हरिशचंद्र घाट और डोम राजा का घर। नाव वाले ने बताया कि डोम राजा के वंशज अब भी अपने महल में रहते हैं जो उनके घाट में बना है। इसके बगल से ललिता घाट है जो नेपाल के रजवाड़ों ने बनाया है। बिल्कुल बगल से एक भवन था जिसमें विधवा महिलाएं अपना समय गुजारती थीं और अब भव्य होटल है। इसके बगल से मानमंदिर है पीछे जंतर-मंतर सवाई राजा जयसिंह का। मान महल का नया रंगरोगन किया जा रहा था। प्लास्टर आफ पेरिस जो इमारतों को इतना सुंदर बना देता है वह मान महल को बदरंग कर रहा था। ऐसा लग रहा था कि अगर सारे घाट दरभंगा और मानमहल की तरह बिक गए तो बनारस समाप्त हो जाएगा। जैसे रेशम में पैबंद विचित्र लगता है वैसे ही पैबंद में भी रेशम लगा दें तो यह भी विचित्र ही लगेगा। शायद पुरानी इमारतों में एक अजीब किस्म की चमक आ जाती है जिसे इतिहास के प्रेमी ही देख पाते हैं मानमहल की ट्रैजडी केवल उन्हीं के लिए है।
लौटकर घाट पर पहुँचकर गंगा आरती देखना अविस्मरणीय अनुभव था। हम दशाश्वमेध घाट पर बैठे और एक घंटे गंगा आरती देखी। घाट पर भक्तजनों, पर्यटकों और विदेशी यात्रियों का जनसमूह था, कुछ नावों पर, कुछ घाटों में और कुछ छतों में। अच्युतं माधवं राम नारायणं के साथ जब आरती शुरू हुई तो मन में जो भाव उतरे, उन्हें शब्दों में उभारना मेरे लिए काफी कठिन है। शिव जी जब भी काशी आते होंगे, दिन भर कहीं भी गुजारे शाम को अपना त्रिशूल दशाश्वमेध घाट में गाड़ देते होंगे।
फिर अगले दिन बनारस की गलियों को। गौदोलिया से रिक्शा लिया और मैदागिन तक का सफर किया। रिक्शे में गुजारे 20 मिनट अब तक की सबसे मनोरंजक यात्राओं में से है। जब सफर शुरू किया तो देखा कि एक जापानी महिला और पुरुष ने अपना मोबाइल रिक्शे में एक स्टैंड में फंसा लिया था और बनारस का पैनोरैमिक व्यू ले रही थी। शायद अपनी रुचि से हो या हो सकता है कि वो जापान के किसी ऐसे प्रोजेक्ट का हिस्सा हो जो इसे क्योटो के तर्ज पर विकसित करने की तैयारी कर रही हो। पुराना बनारस ओल्ड इंडियन फोटोग्राफी के लाहौर की याद दिलाता है और मुगल काल की पुरानी दिल्ली की हवेलियाँ भी दिमाग में ताजा हो जाती है। हम एक बहुत पुराने समय में पहुँच जाते हैं जैसे अभी गंगा नहीं नहा आये, पूरी परंपरा से ऊर्जस्वित स्नान किया हो।