Saturday, September 20, 2014

द प्रिसेंस डायरी




पिछली बार जब सिंघम ने फिर से मल्टीप्लेक्स में वापसी की तो मेरे लिए केवल इतना संतोष छोड़ गया कि मैंने खूबसूरत फिल्म का प्रोमो देख लिया। इसी क्षण मैंने निश्चय किया कि इसे जरूर देखूँगा। बाद में पता चला कि यह हृषिकेश मुखर्जी की फिल्म खूबसूरत की कहानी के तर्ज पर बनाई गई है।
किसी खूबसूरत कहानी को दोबारा नए अंदाज में कहना वैसा ही है जैसा देवता की मूर्ति बनाना। आपको मूर्ति में भी वैसी ही जीवंतता, वैसे ही प्राण डालने होते हैं जैसे देवता में नजर आना चाहिए। बीते दिनों चश्मेबद्दुर फिल्म आई, इसमें सई पराजंपे की चश्मेबद्दुर की कहानी दोहराई गई थी लेकिन जब हसीना मान जाएगी, हीरो नंबर 1 जैसी फिल्म का कोई निर्देशक सई परांजपे की फिल्म को दोहराए तो क्या उसकी वैसी ही गरिमा रह पाएगी। खूबसूरत में भी इस बात की आशंका थी लेकिन बहुत कलात्मक ढंग से बनी नई फिल्म दर्शकों को वैसे ही आनंद से भरती है जैसी पुरानी फिल्म थी।
दीना पाठक पिछली फिल्म में दादी थी इस बार उनकी बेटी रत्ना पाठक ने यही भूमिका निभाई है यद्यपि रत्ना उस तरह से रौब गालिब करने में पूरी तौर पर असफल रही हैं जैसा उनकी मम्मी ने किया था लेकिन सोनम कपूर ने रेखा को पीछे छोड़ दिया। मुझे लगता है कि रेखा ने खूबसूरत में बहुत अच्छी एक्टिंग की थी लेकिन यह रोल उन पर सहज नहीं लग रहा था। सोनम कपूर पर यह रोल बहुत सहज लगा।
फिल्म का सबसे खूबसूरत हिस्सा उसके संवादों में है। इसमें प्रकट रूप से कुछ कहा जाता है और अंदर से कुछ और आवाज निकलती है जैसे कालिदास के नाटक अभिज्ञान शाकुन्तम में शकुंतला प्रकट रूप से कुछ कहती है और उसके अंतर्मन से कुछ और ही ध्वनि निकलती है।
कालिदास के क्लासिकल प्रेम का यह सुंदर उदाहरण खूबसूरत में हर जगह है। इसकी शूटिंग राजाओं के भव्य महलों में हुई है तो डेढ़ घंटे संग्रहालय जैसी जगह में घूमने का सुख भी यह फिल्म देती है।