Thursday, December 10, 2015

श्री शैलं मल्लिकार्जुन यात्रा



 

जब बच्चे में ईश्वर गुणों और अवगुणों का बंटवारा करते हैं तो वे खास मेहनत नहीं करते, कम से कम मेरे मामले में तो उन्होंने बिल्कुल ही मेहनत नहीं की। मेरे अंदर पापा और मम्मी के कुछ गुण और अवगुण पूरी तौर पर उतर आए हैं। जैसे मम्मी को साहित्य में अनुराग है पापा को खास नहीं और मैं साहित्यानुरागी हूँ। मम्मी गहराई से धार्मिक हैं पापा ने कभी ईश्वर के संबंध में गहराई से सोचा भी होगा, मुझे नहीं लगता। मैं भी पापा जैसा ही हूँ। पापा दुनिया देखने को उत्सुक रहते हैं मम्मी को घर में ही अच्छा लगता है। मैं भी दुनिया देखना चाहता हूँ।

 मेरी मम्मी को बहुत आकर्षण था कि हम श्रीशैलं के रूप में एक ऐसी जगह हैं जहाँ शिव जी ज्योतिर्लिंग के रूप में और पार्वती माँ शक्ति पीठ के रूप में विराजित हैं जबकि पापा और मेरा आकर्षण नागार्जुन सागर बाँध का था।

फिर भी जब मैं श्री शैलं के मंदिर पहुँचा तो लगा कि मैं मम्मी के ज्यादा नजदीक हूँ पापा से कुछ ज्यादा धार्मिक हूँ। सुबह हम लोग उठे, एमएस सुब्बुलक्ष्मी विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ कर रही थीं। सुबह वेणी वाले चारों ओर फैल गए थे। महिलाएँ वेणी खरीद रही थीं, कुछ महिलाएँ वेणी लगाकर मंदिर की ओर बढ़ रही थीं। उनके फूलों की खुशबू वातावरण में बिखर गई थी। मुझे वेणी अपने देवता के प्रति उनकी अगाध श्रद्धा का प्रतीक लगी। वे सुवासित होकर, सुंदर दिखकर अपने परिवेश की सुंदरता बढ़ाती हैं। सत्यम शिवं सुंदरं। सुंदरता सुख देती है। मुझे लगता है कि सुंदर दिखने के पीछे स्त्री की संसार को सुखी बनाने की मंगलकामना है। ऐसा सोचने पर मुझे मेरी बेटी याद आती है। वो तीन साल की है नया ड्रेस पहनती है और पूछती है पापा मैं कैसी लग रही हूँ। उत्तर भारत में यह वेणी अनुपस्थित है और इन फूलों के बगैर यहाँ के मंदिरों में आप वैसा धार्मिक बोध नहीं महसूस कर पाएंगे जैसा आप दक्षिण के मंदिरों में करते हैं। यहाँ मंदिर आपके जीवन का नितांत जरूरी हिस्सा है ईश्वर आपसे पृथक नहीं, आपके बिल्कुल करीब है।

यह मंदिर रेड्डी राजाओं ने बनाया था जो कृष्णदेवराय के समकालीन थें। मंदिर के चारों ओर परकोटा बना है और चारों ओर मूर्तियों का अंकन हुआ है। यह अजंता की तरह की गैलरी है। दुर्भाग्य यह है कि यहाँ धार्मिक लोग आते हैं जिन्हें इतिहास से सरोकार नहीं और इतिहासकार इसलिए नहीं आते क्योंकि यह एक धार्मिक जगह है।

परकोटे में हुए अंकन में कुछ पशुओं से संबंधित भी हैं। यह पशु बहुत विचित्र हैं कुछ चीनी ड्रैगन जैसे लगते हैं शिकार के प्रसंगों का बहुत सुंदर अंकन हुआ है। यह संयोग नहीं है क्योंकि यह पूरा क्षेत्र टाइगर रिजर्व है।

पूर्वी घाट यहाँ सबसे सुंदर रूप में मौजूद है। ऊँचे पर्वत पर बसा श्री शैलं और नीचे घाटियों से नजर आती कृष्णा नदी यात्रियों को अपूर्व आनंद से भर देती है। सबसे निचली जगह है पाताल गंगा। बताते हैं कि जब कलियुग आने वाला था तब साऊथ के ऋषि—मुनि यहीं कृष्णा नदी में प्रवेश कर गए और फिर पाताल लोक से निकल कर गंगा जी से होते हुए स्वर्ग में पहुँचे। इस सेफ पैसेज की महत्वता को देखते हुए देवराय द्वितीय की पत्नी ने यहाँ सीढ़ियाँ लगाई थीं।

धार्मिक क्षेत्र में आपका ज्ञान आपके स्वर्ग और मोक्ष के रास्ते तैयार करता है। श्री शैलं आने के बाद मुझे मालूम हुआ कि काशी में सात जन्म लेकर जीवन गुजारने के बराबर का पुण्य श्री शैलं में भगवान मल्लिकार्जुन के दर्शन से हो जाता है।

क्रमशः

2 comments:

  1. बहुत सुूंदर पोस्‍ट। मेरी नई पोस्‍ट को आपका इंतजार है।

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  2. श्रीशैलम के बारे में बहुत कुछ पढ़ा सुना है लेकिन इस व्यक्तिगत विवरण में और भी बहुत कुछ है जो अन्यत्र नहीं मिलता। दक्षिण ने आज भी भारतीयता के मूल सौन्दर्य को बचाकर रखा है, इसके लिए समस्त भारत उनका आभारी है।

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आपने इतने धैर्यपूर्वक इसे पढ़ा, इसके लिए आपका हृदय से आभार। जो कुछ लिखा, उसमें आपका मार्गदर्शन सदैव से अपेक्षित रहेगा और अपने लेखन के प्रति मेरे संशय को कुछ कम कर पाएगा। हृदय से धन्यवाद