क्रिकेट के भगवान ने खेल को अलविदा कर दिया। सोचा था कि जब भगवान विदा होंगे
तो वो घड़ी विलक्षण होगी। लोगों के लिए उनकी तारीफ में पुल बाँधने के लिए शब्द कम
होंगे लेकिन अफसोस भगवान ने बहुत देर कर दी।
जैसे परिवार में होता है
एक उम्र आती है जब परिवार के सदस्य सबसे उम्रदराज सदस्य की मौत की प्रतीक्षा करने
लगते हैं वो मर क्यों नहीं जाता। उसे शर्म क्यों नहीं आती, आर्थिक रूप से
महत्वपूर्ण हुए बगैर भी वो जिये क्यों जा रहा है। भगवान के बल्ले से जब तक रन
निकलते रहे, आलोचक चुप रहे।
जब बल्ला बंद हो गया तो मुँह
खुल गए। दुख इस बात का नहीं कि उन्हें संन्यास के लिए कहा गया। दुख इस बात का रहा
कि आलोचकों ने अपशब्दों का प्रयोग किया। कीर्ति आजाद ने कहा कि सचिन ने देश पर
उपकार किया।
फिर भी
मैं कीर्ति को दोष नहीं दूँगा, दोष तो सचिन का है। वे रनों के पहाड़ पर खड़े थे
लेकिन उन्हें यह भी कम लग रहा था। वे कीर्तिमानों का शतक लगा चुके थे लेकिन फिर भी
उन्हें प्रसिद्धी की भूख बच गई थी। वे ऐसे समय में भी क्रिकेट खेलना चाहते थे जब
उनकी तकनीक चूक गई थी।
उन्होंने थोड़ी उपलब्धियाँ
प्राप्त करने के लिए जीवन भर की उपलब्धियों पर पानी फेर दिया। शायद वे हमेशा की
तरह इस इंतजार में रहे कि एक बार फिर बल्ले का जादू उनके विरोधियों को चुप कर दे
लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ।
मुझे सार्वजनिक जीवन में सचिन का कोई योगदान नजर नहीं आता। भगवान का सरोकार
केवल क्रिकेट में नहीं दिखता, वो हर जगह दिखता है। जब देश लोकपाल की आग में जल रहा
था, सचिन ने अपनी राय नहीं रखी। सचिन अंबानी की तरह अट्टालिका बनवाते रहे।
उन्होंने करोड़ों रुपए कमाए लेकिन शायद ही फूटी कौड़ी देश के लिए लगाई।
फिर भी तुममें लाख बुराइयाँ सहीं, लाख लालच ही सही, जब तुम बल्ला पकड़ते हो
तो तुममे भगवान दिखने लगता है और आखिर भगवान को भी तो अपना भेष छोड़ना पड़ता है तो
हम कह सकते हैं कि क्रिकेट के भगवान ने विदा लेने के लिए एक लीला रची और लोग समझते
रहे कि सचिन का बल्ला अब चूक गया है।
सब कुछ तो आपने कह दिया ..शायद येही सच है ....
ReplyDeleteचढ़ते सूरज को सलाम ...बाकि हो जाते बेनाम !
ये ही दस्तूरे -दुनियां है ....
शुभकामनायें!