काबुली वाला फिल्म का गाना ऐ मेरे प्यारे वतन जब भी सुनता हूँ तो फेरी वाले आँखों के सामने घूमने लगते हैं। रिक्शे में साड़ियाँ भरें, ऊन का गोला लिए न जाने वो कहाँ से आते थे। हम सर्दी की धूप तापते बैठे रहते और हमारी माताओं के हाथों में स्वेटर होते। उनकी आवाज सुनकर पड़ोस की सारी महिलाएँ समवेत रूप से इकट्ठी हो जातीं। वो बताते कि उनके पास असमिया सिल्क है जो और कहीं न मिलेगा। हम भांप जाते कि ये फेरीवाला चालाकी कर रहा है लेकिन हमारी माताएँ उनकी साड़ियों के मोहजाल में खींची चली जाती।
उनकी साड़ी बेचने की स्टाईल हमारे एमबीए स्टूडेंट्स को सिखानी चाहिए। वे ऐसे चिरौरी करते जैसे घर के बच्चे हों, माँ यह ले लो, आप इसमें खूब सुंदर दिखेंगी। जब बारगेनिंग की प्रक्रिया चलती और माताएँ खरीदी से पीछे हटती दिखतीं तो हम बच्चों का मुँह छोटा हो जाता था। एक तो खरीद लो, हम मन में सोचते, बिचारा न जाने कहाँ से कितनी साड़ियाँ लादे चला आया है। उसे रिक्शा वाले को भी पैसे देने होंगे। जब खरीदी तय हो जाती तो थोड़ा संतोष मिलता।
पता नहीं वो इमोशनल ड्रामा करते थे या यूँ ही उन्हें ईश्वर ने एक सुनहरा दिल दिया होगा, वे बहुत दुवाएँ देते थे। एक फेरी वाला मुझे याद है। उसने मेरी मम्मी से कहा, तुम्हारा बेटा बहुत सुंदर है इसकी बहू के लिए यह असमी सिल्क रख लो, माँ तुम याद करोगी, मैं भी तुम्हारा बच्चा हूँ। माँ को वो सिल्क साड़ी पसंद आई, शायद ऐसा उन्होंने दिखावा किया। उन्हें फेरीवाले की बात पसंद आ गई क्योंकि उन्होंने इस साड़ी को दिखाते हुए कई परिचितों से इस घटना का जिक्र किया।
अच्छी साड़ी खरीद लेना भी महिलाओं के लिए जंग जीतने जैसा होता है जब माँ ने यह साड़ी खरीद ली तो पड़ोस की कई महिलाओं को इसे दिखाया जो उनके पतियों के सौभाग्य अथवा उनके स्वयं के दुर्भाग्य से वहाँ मौजूद नहीं थी। उन्होंने अफसोस जताया कि वे होती तो इसे खरीद लेतीं।
जो रिक्शा भी हायर नहीं कर पाते थे वे पैदल ही अपना काम चलातें। उनमें गजब का टैलेंट होता। वे चिंकारा बेचते, दोस्ती के सुंदर गाने चलाते। बच्चों की तरफ ललचाई निगाह से देखते लेकिन बच्चों की माताओं को यह बेकार का खर्च लगता, उसके बदले बच्चे बाम्बे मिठाई जैसी चीज खा लें तो यह उन्हें ज्यादा पसंद था। मैं चिंकारा एक बार नहीं खरीद पाया, मैं यह कहने के लिए साहस भी नहीं जुटा पाया कि मुझे चिंकारा खऱीदना है क्योंकि मुझे संगीत की समझ तो थी नहीं तो व्यंग्य का शिकार होता कि खरीद लिया है और पड़ा है।
कुछ युवा किताबें बेचते हैं महंगी एनसाइक्लोपीडिया। पता नहीं ये किताबें बिकती हैं या नहीं, ये बड़ी इज्जत और अदब से सबसे पेश आते हैं। नहीं भी खरीदो तो भी यह कहना नहीं भूलते कि थैंक्स सर आपने हमें धैर्य से सुना। हम इन्हें दुत्कारते हैं हमने कभी यह नहीं सोचा कि इनकी आत्मा पर इसका कितना कष्ट पहुँचता होगा। मुझे याद है एक बार ऐसा ही एक सेल्समैन आया, वो किताबों के बारे में बोलते हुए बुरी तरह हकला रहा था। उसकी हकलाहट जन्म की नहीं थी, मुझे समझ में आ गया कि हमारे व्यवहार ने ही उसे इस तरह तोड़ दिया है कि अपमान की आहटों की लडखड़ाहट उसकी जबान में नजर आने लगी है। मैं उसके साहस की प्रशंसा करना चाहूँगा, इतना अपमान सहकर भी वो अपनी रोजी-रोटी की जंग में लगा हुआ है वो हारा नहीं है, वह सचमुच का विजेता है। उसे फोर्ब्स जैसी पत्रिका बिजनेसमैन आफ ईयर जैसी किसी उपाधि से नवाजा जाना चाहिए।
इन साहस से भरे चेहरों की जिंदगी में झाँक कर देखें तो कितना अंधेरा दिखता है। एक बार ऐसे ही सामान बेचने आए एक सेल्समैन से मैंने पूछा, तुमको कितनी सैलरी मिलती है। उसने कहा कि उसे सैलरी नहीं मिलती, खाना मिलता है और रहने को एक कमरा मिला है। सैलरी की जगह प्वाइंट मिलते हैं एक निश्चित संख्या में प्वाइंट इकट्ठा होने पर ही सैलरी मिलती है।
सौरभ . (जी)
ReplyDeleteमैं फिर कहूँगा कि आपका लिखा ,मैं बार-बार पढ़ता हूँ ...क्यों की ये मुझे सच्चाई से रु-बी-रु कराता है ...ऐसे लगता है कि ये मेरा देखा हुआ है या अब भी मेरे सामने घट रहा है और ये आपके अहसासों को दर्शाता है कि आप दूसरों की तकलीफ को कितनी शिद्दत से महसूस करते हो !अच्छा लगता है ..जब कोई अपने जैसा लगता है|
दूसरों के प्रति अपने दिल को ऐसे ही संवेदनशील बनाये रखें..ख़ुशी मिलेगी |
शुभकामनायें! |
सच...इनके जीवन में झांक कर देखो तो काफी दर्द नज़र आता है..
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति।।।
नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।।।