Sunday, December 2, 2012

जो कभी साथ थे......

पुराने दोस्त अक्सर ख्यालों के पन्नों में गुम हो जाते हैं हम पिछले पन्ने पलटते हैं और सुखद यादों में खो जाते हैं। नये जमाने में दोस्तों से कान्टैक्ट काफी आसान हो गया है। आप फेसबुक गए, सर्च किया और आपका दोस्त हाजिर। फिर भी मैं दोस्तों से मिलने के लिए फेसबुक की कृपा से बचना चाहता हूँ। यह नहीं कि उनसे मिलना अच्छा नहीं लगता लेकिन यह कि मैं पिछली स्मृतियों को पवित्र रखना चाहता हूँ। उन्हें अक्षत रखना चाहता हूं ताकि उनका डिवाइन रूप किसी भी तरह से आर्डनरी में न बदल जाए।        

-०- ------०--------
मैं भाग्यशाली रहा हूँ कि दस बाद भी जब दोस्त मुझसे मिलते हैं तब वो मुझसे ज्यादा खुश होते हैं। हम समय के उस पल में पहुँच जाते हैं हालांकि स्मृतियों में भी काफी कुछ बिखर जाता है। मुझे अखबारों में जब एलुमनी मीटिंग के संबंध में न्यूज मिलती है तो उन्हें मैं जरूर पढ़ता हूँ। दो साल पहले हमारे कालेज में भी ऐसी ही मीटिंग हुई थी, मैंने पार्टिसिपेट नहीं किया था, इसकी बड़ी वजह यही थी कि वो अब बदल गए होंगे क्योंकि स्कूल के ऐसी ही एलुमिनी मीटिंग में मैंने महंगी सिगरेट पीते हुए कुछ दोस्तों को देखा, मुझे बड़ा बुरा लगा क्योंकि जिन्हें स्कूल के बच्चों के रूप में देखा है उन्हें इतनी अभिजात्य और बुरी आदतों के साथ देखना काफी बुरा लगा। वो एलुमिनी मीटिंग मेरे लिए काफी बुरी थी। मैंने स्कूल की एलुमिनी मीटिंग के लिए इस घटना के बाद भविष्य में तौबा कर लिया।
-----------०-------------
यूपीएससी की कोचिंग में हमने कुछ वक्त रायपुर में गुजारा था, काफी संघर्ष के दिन थे। फोन पर भी बात होती थी। फिर भी वक्त को हमारा सलेक्शन मंजूर नहीं था। हम सभी दोस्त अलग हो गए। १० साल बाद एक बार एक अच्छे  दोस्त से दुबारा भेंट हुई। मैं पहचान ही नहीं पाया। उसने मुझे पहचान लिया लेकिन खुशी उस तरह से जाहिर नहीं हुई। मुझे आशापूर्णा देवी की पढ़ी हुई एक कहानी याद आई। भाई आक्सफोर्ड चला जाता है। जाने से पहले बहन से खूब प्यार रहता है। बहन के डायरी लिखने के शौक को प्रमोट करता है। आक्सफोर्ड से लौटने पर पाता है कि बहन की तो दुनिया पूरी तौर पर बदल गई है। लौटकर बहन की डायरी के पुराने पन्ने पढ़ता है। इसमें भैया को शादी के पूर्व एक अंतिम संदेश लिखा रहता है। भैया पता नहीं मैं शादी के बाद भी ऐसी रह पाऊँ या नहीं, क्योंकि समय कितना कुछ बदल जाता है हम कह नहीं पाते। ऐसा ही शायद इस रिश्ते में भी हुआ। समय ने इस रिश्ते को लील लिया। कई दोस्तों से हमारी मुलाकात अंतिम मुलाकात हो जाती है इस मामले में भी शायद यह अंतिम ही हो क्योंकि हमने एक दूसरे का मोबाइल नंबर लेने की जहमत भी नहीं उठाई। एक समय का गहरा रिश्ता, किसी दूसरे समय में कितना नाजुक और खोखला बन जाता है, कितना अजीब है सब कुछ।




3 comments:

  1. Kuchh ajeeb ittefaaq raha...puranee sakhiyon se kuchh is tarah saath chhoota ki jaise rishte hawa ho gaye hon!
    Bahut sundar aalekh.

    ReplyDelete
  2. होता है, ऐसा भी होता है!

    ReplyDelete
  3. ये जिन्दगी ही अजीब है..

    ReplyDelete


आपने इतने धैर्यपूर्वक इसे पढ़ा, इसके लिए आपका हृदय से आभार। जो कुछ लिखा, उसमें आपका मार्गदर्शन सदैव से अपेक्षित रहेगा और अपने लेखन के प्रति मेरे संशय को कुछ कम कर पाएगा। हृदय से धन्यवाद