Sunday, January 6, 2013

पुस्तक नेहरू पर, विचार गाँधी का




जहाँ मुंज घास नहीं उगती और जहाँ चिंकारा नहीं विचरता, उस क्षेत्र में प्रवेश कलियुग में वर्ज्य है। इस मान्यता को तोड़ते हुए जब पहली पीढ़ी विलायत गई होगी तो कैसे अनुभव रहे होंगे? शायद हम कभी न जान पाएं। ब्रिस्टल में राजा राममोहन राय की समाधि को देखते हुए यह प्रश्न मेरे दिमाग में आता था। खुशवंत सिंह की पुस्तक बरियल एट सी को पढ़ते हुए यह प्रश्न ताजा हो गया। यह पुस्तक परोक्ष रूप से नेहरू के जीवन पर आधारित है। नेहरू से मिलते-जुलते केरेक्टर के विलायत में अनुभव कुछ तो नेहरू के और कुछ खुशवंत के तथा बहुत से उन लोगों के होंगे जिन्होंने खुशवंत को अपने किस्से सुनाए होंगे। इन अनुभवों को पढ़ने के दौरान मुझे गाँधी की विदेश यात्रा जेहन में आ गई।
                                    कक्षा आठवीं में एक पूरी किताब हम लोगों के सिलेबस में गाँधी जी पर थी। मुझे यह बहुत दिलचस्प लगी थी। गाँधी जी की विलायत यात्रा का वर्णन इसमें बहुत सुंदर था। एक वाक्य मुझे याद है एक ब्रिटिश हमसफर ने गाँधी से कहा कि बिस्के की खाड़ी तक तो ठीक है लेकिन उससे आगे तुम शराब को हाथ लगाए बगैर नहीं रह पाओगे। फिर एक वर्णन उस किताब में आया। गाँधी जी मांसाहारी रेस्टारेंट के आगे भीगते रहे, अपनी दोस्ती तोड़ दी लेकिन माँ को दिया हुआ वचन नहीं छोड़ा।
                    मुझे आश्चर्य होता है कि गाँधी फिल्म में इन दो दृश्यों को क्यों नहीं दिखाया गया? एक भारतीय के लिए शून्य से नीचे तापमान में इनके बगैर रह पाना कितना कष्टसाध्य रहा होगा, ऐसे व्यक्ति के लिए जो ब्रिटिश कल्चर में रंगना चाहता है उसके लिए डांस सीख रहा है, टाई पहनना सीख रहा है उसके लिए यह सब कितना कष्टसाध्य रहा होगा लेकिन गांधी इसलिए ही गांधी बन पाए।
                                                   सचमुच यह गाँधी की उपलब्धि रही कि नेहरू जैसे केरेक्टर पर आधारित एक पुस्तक पढ़ते हुए भी मैं उनको ही सोच रहा हूँ? इंग्लैंड के मुक्त समाज को देखते हुए और इस पुस्तक को पढ़ने के बाद मुझे यह महसूस हुआ कि इस समाज में विचलन बेहद आसान था और जो चीजें हमको भारत में बेहद परंपरागत लगती थी, विलायत में पहुँचकर ऐसा माहौल होता था कि लगता होगा कि ये सब तो फिजूल है। आप माइकल मधुसूदन दत्त के जीवन में इसे देख सकते हैं।
                             अगर हमने किताबों में नहीं पढ़ा होता तो शायद ही विश्वास कर पाते कि गाँधी ने अपनी युवावस्था विलायत में गुजारी थी। वे विलायत के प्रदूषण से बिल्कुल अछूते रहे, यही वजह है कि बिल्कुल देहात का एक व्यक्ति भी उनसे संवाद कर पाया। मुझे फाक्स हिस्ट्री की गाँधी जी पर बनी एक फिल्म याद आती है। इस डाक्यूमेंट्री में एक ब्रिटिश लड़की कहती है कि मुझे गाँधी जी अच्छे लगते हैं क्योंकि वे सबसे प्यार करते हैं। ठंड से ठिठुरने के इस मौसम में जब मैं यह लिख रहा हूँ तो गाँधी के संयम और प्रतिज्ञापालन के प्रति मेरी कृतज्ञता और बढ़ गई है।

4 comments:

  1. Ye sach hai ki Gandhi ji ka jeevan vilakhan raha...unka bola harek jumla, quotable quote hai..bada achh laga aapka ye aalekh padh ke.

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  2. संयंम और प्रतिज्ञापालन को निबाहने का एक उत्तम उदहारण.................
    बहुत रोचक सदा की तरह ....आपके मान-सम्मान का आभार!
    स्वस्थ रहें!

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  3. गांधी जी के जीवन कई कई ऐसे प्रसंग हैं जो प्रेरणा देते हैं ... अपनी संस्कृति की विशालता का आभास कराते हैं ...

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  4. सटीक आलेख...सुन्दर संस्मरण...बहुत बहुत बधाई...

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आपने इतने धैर्यपूर्वक इसे पढ़ा, इसके लिए आपका हृदय से आभार। जो कुछ लिखा, उसमें आपका मार्गदर्शन सदैव से अपेक्षित रहेगा और अपने लेखन के प्रति मेरे संशय को कुछ कम कर पाएगा। हृदय से धन्यवाद