१३ जनवरी २०१२ की फ्रंटलाइन पर रबीन्द्रनाथ टैगोर पर छपी कवर स्टोरी को पढ़ते हुए
एक चित्र पर ठिठक गया। यह १९३० की फोटो है जब रबीन्द्रनाथ न्यूयार्क में थे और हेलेन
केलर से मिलने पहुँचे थे। चित्र में हेलेन केलर की ऊंगलियाँ टैगोर की धवल दाढ़ी और
होंठों पर हैं। वे गहरी आत्मीयता से इन्हें स्पर्श कर रही हैं उनका पूरा चेहरा टैगोर
के प्रति गहरी आत्मीयता से प्रस्फुटित हो रहा है। टैगोर खुली आँखों से हेलेन केलर को
देख रहे हैं उनकी आत्मीयता कहीं छिप गई है और जिज्ञासा का पक्ष प्रबल हो गया है।
इस चित्र को देखकर मुझे
महसूस हुआ कि इंद्रियां हमें सुख देती हैं लेकिन इनका होना हमें सुख से भटका भी देता
है। दुनिया की दो महान हस्तियाँ जब एक दूसरे से मिलीं तो एक पूरी तरह से भावविभोर हो
गई लेकिन टैगोर जिज्ञासा में बह गए। पुरानी कहानी याद आती है द्रोण ने कहा था कि चिड़िया
की आँख पर नजर रखना है लेकिन इंद्रियाँ कहीं पर टिकने नहीं देती।
हेलेन
केलर पर पढ़े अंग्रेजी के एक पाठ की अंतिम पंक्तियों का हिंदी तर्जुमा कुछ इस प्रकार
था, दुनिया की सबसे खूबसूरत चीज को न छूआ जा सकता है न देखा जा सकता है इसे केवल महसूस
किया जा सकता है। इन पंक्तियों का पूरा मर्म मैंने इस चित्र को देखकर ही पाया। चित्र
देखने के बाद मुलाकात के बारे में जानने की दिलचस्पी हुई, हेलेन केलर पर पेज खंगाले।
हेलेन ने इस मुलाकात के बारे में लिखा था कि टैगोर को छूने का एहसास ऐसा था जैसे किसी
संत का आशीर्वाद झर रहा हो। मुझे आश्चर्य होता है कि भारत को अब तक आजादी क्यों नहीं
मिल पाई। हेलेन ने उन्हें बताया कि उसने गीतांजलि पढ़ी है और टैगोर की एक कविता भी
बताई। फिर कहा कि मुझे अच्छा लगता है कि आप पूरी मानवता के बारे में सोचते हैं।
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हेलेन की मुंबई यात्रा का एक दिलचस्प संस्मरण भी पढ़ने मिला। इसे श्रीमती माधवी
राजेंद्र व्यास ने हिंदू में लिखा था। जब हेलेन मुंबई आई तो उन्होंने साड़ी पहनने की
इच्छा जताई। उस समय महाराष्ट्र सरकार के मंत्री श्री शांतिलाल शाह की बेटी ने हेलेन को साड़ी
पहनाई। श्रीमती व्यास को यह किस्सा उनके पति ने बताया जो खुद ही १२ वर्ष के उम्र में
दृष्टिबाधिता का शिकार हो चुके थे और उनके एसोसिएशन ने ही हेलेन को मुंबई आमंत्रित
किया था।
इस मुलाकात के बारे मे पहली बार जाना। एक चित्र कितनी कहानियाँ कह सकता है। आभार!
ReplyDeleteबहुत सुंदर ....महसूस करने में ही दिल का सुकून है !
ReplyDeleteआभार!
thanks for sharing
ReplyDeleteकाले पर सफेद लिखा, पढना आंखों पर जोर पड़ता है.
ReplyDeleteबहुत सुंदर..इस संस्मरण को हमसे साझा करने के लिए धन्यवाद।।।
ReplyDeleteHelen could even recognize the difference in the nature of trees by touching their bark, even though she had never seen them... she was perhaps one of the most versatile and positive persons the world has produced
ReplyDeletePadh kar accha laga.
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