Tuesday, January 22, 2013

राहुल के भाषण पर जो मैंने फेसबुक से समझा...


  


  jab-2 my congressi hona chata hu tab-2 digvijay singh ny to rajiv shukla ny to susheel shinde ny to manishankar ayyer meri mansikta badal dete hy...unka bahut-2 dhanywaad..

  मेरे एक युवा मित्र की फेसबुक पर यह टिप्पणी उन युवाओं की प्रतिनिधि टिप्पणी है जो अपने दिल और दिमाग के दरवाजे खुले रखते हैं जिनके मन किसी खास राजनीतिक विचारधारा के प्रति पूर्वाग्रह से ग्रसित नहीं हैं। जब कहीं से उन्हें उम्मीद की किरण दिखती है वे इस ओर मुड़ जाते हैं।
                              युवा वर्ग का यही तेवर देश के भविष्य के प्रति हमें आशान्वित करता है लेकिन वोट बैंक की घटिया राजनीति में डूबे हमारे राजनेता हमेशा युवा भरोसे का गला घोंट देते हैं। राहुल गांधी के भावुक भाषण को अनेक लोगों ने सराहा यद्यपि सभी को मालूम था कि इसमें लफ्फाजी के सिवा कुछ नहीं है क्योंकि राहुल के पास देश के लिए किसी तरह का विजन नहीं है, उन्हें देश के इतिहास की जानकारी भी नहीं, समझ भी नहीं, थोड़ी बहुत जानकारी जो इस युवा को है वो केवल अपने पिता और दादी तक ही सीमित है। उनका शब्दकोष बेहद सीमित हैं विकास, आम आदमी जैसे कुछ शब्द ही उसमें शामिल है लेकिन इनके भी असल अर्थ उन्हें नहीं मालूम। ऐसा लग सकता है कि राहुल गांधी पर टिप्पणी करने में जरूरत से अधिक सख्त हो रहा हूँ लेकिन एक ऐसा लीडर जिसे देश संभालना है अपनी बात को केवल एक रात और एक सुबह की कहानी में समेट दे, यह मुझे पसंद नहीं, मुझे तो तब अच्छा लगता जब वो नेहरू की तरह दो सौ पीढ़ियों से अधिक पुरानी बातें भी याद करते। मैंने दूरदर्शन में अरसे पहले टर्की के प्रेसीडेंट का एक इंटरव्यू देखा था, इसमें वो टैगोर से लेकर राधाकृष्णन तक भारत के सभी इंटलेक्चुअल्स के बारे में धड़ेल्ले से अपनी बात कह रहे थे, राहुल कहीं से जमीन से जुड़े नहीं लगते, दलितों के साथ खाना खाने से कोई लीडर नहीं बनता, उसे उस भाषा में बात करनी होती है जिसे दलित बोलते हैं उसे अपना राजसी लबादा वैसे ही त्यागना पड़ता है जैसे गाँधी जी ने बैरिस्टरी की पढ़ाई करने के बाद भी गरीब की लंगोट ही पहनी।
                              राहुल तब भावुक क्यों नहीं हुए जब देश लोकपाल की आवाज को लेकर संघर्ष कर रहा था, वे तब क्यों नहीं सड़कों पर उतरे जब देश दामिनी के लिए संघर्ष कर रहा था। वे तब क्यों चुप थे जब शिंदे और दिग्विजय भारतीय समाज पर आतंकवाद का घिनौना आरोप लगा रहे थे, उन्होंने तब क्यों कुछ नहीं कहा जब जमात-उद-दावा के नेता हाफिज सईद साहब ने खुलेआम कहा कि अपने हिंदू आतंकवाद पर भारत क्यों सवाल नहीं उठाता।
            जब उनके अपनी पार्टी के नेता देश का सेकुलर फैब्रिक नष्ट करते हैं तब राहुल को क्या हो जाता है? हर बार जब मैं राहुल गांधी के भावुक भाषण पर किसी की सकारात्मक टिप्पणी को सुनता हूँ तो सूरज भाई की टिप्पणी याद आ जाती है और भारतीय राजनीति के प्रति निराशा के बादल पूर्ववत छा जाते हैं।

3 comments:

  1. यही प्रश्न तो हमारा है जब युवा सडको पर था तब माननीय कहाँ थे ...

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  2. मैंने राजीव गाँधी का भाषण तो नहीं सुना अपितु इतना जाना की उनके भाषण को काफी सराहा गया ...हो सकता आपकी बात में तथ्य हो ...लेकिन हमें उन्हें 'Benifit of Doubt'to देना चाहिए.....यह तो वक़्त ही बताएगा .. कि वे कितने sincere हैं ....है न

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  3. Shaayad Samasya Hamari hain, Ham yahan baith kar comments to karate hain, twitter facebooks pe like/commments maarate hain par voting karate vaqt ya haalaton se ladate vaqt ek aam insaan bankar jeena chahte hain. Aur vahin rahenge. Itihaas gavah hain ki Ishwar ne is desh ko bahut kuch diya hain par sab shaayad kisi aur ke khajane bharane ke liye tha........... Hamare matthe to bhukh aur garibi hi rah gayin hain.... aur divide and rule ki voh kabhi na fail hone waali policy jo hamesha work karati hain.

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आपने इतने धैर्यपूर्वक इसे पढ़ा, इसके लिए आपका हृदय से आभार। जो कुछ लिखा, उसमें आपका मार्गदर्शन सदैव से अपेक्षित रहेगा और अपने लेखन के प्रति मेरे संशय को कुछ कम कर पाएगा। हृदय से धन्यवाद