अंग्रेजी दौर के
राजाओं के बारे में हमारे मन में एक खास किस्म की छवि बैठी है। ऐशो-आराम में खोये,
अंग्रेजों की खुशामद में लगे और रियाया से बेखबर लोग। मेरे मन में यह छवि तब और
गहरी हुई जब मैंने फ्रीडम एट मिडनाइट में महाराजाओं के जीवन के वर्णन पढ़े। ऐसे में
बीबीसी में एक स्टोरी पढ़ना काफी दिलचस्प अनुभव रहा। यह काशी नरेश के बारे में था।
काशी नरेश ने संयुक्त प्रांत के पूर्व ब्रिटिश लेफ्टिनेंट जनरल रीड से दक्षिण
इंग्लैंड के एक गाँव स्टोक रो का एक मार्मिक किस्सा सुना। अकाल का वक्त था, एक माँ
ने पूरे परिवार के लिए एक दिन का पानी सुरक्षित रखा था, परिवार वालों के बाहर जाने
पर एक मासूम बालक उसे अकेले ही पी गया, इस पर माँ ने उसकी खूब पिटाई की।
जनरल
रीड से यह कहानी काशी नरेश को पत्र से प्राप्त हुई। काशी नरेश ने तुरंत निर्णय
लिया कि इस इलाके की पानी की समस्या दूर करनी चाहिए। उन्होंने कुआँ खुदवाने के लिए
जनरल रीड को मदद की और भारत के किसी महाराज का पहला कुआँ इग्लैंड में बन गया। इसके
बाद अन्य महाराजाओं ने भी पहल की। महाराज ने समय-समय पर मरम्मत के लिए मदद भी
प्रदान की और चेरी का एक बगीचा भी वहाँ लगवाया। पानी की समस्या हल होने से यह
इलाका पूरी तरह आबाद हुआ।
कुआँ काफी चर्चित हुआ और
इसकी स्थापना के 100 वें वर्ष में ड्यूक आफ एडिनबरा भी यहाँ आए। वैसे हमारे मन में
प्रश्न आ सकता है कि बनारस के आसपास जब हजारों लोग प्यासे मर रहे होंगे तो सुदूर
इंग्लैंड में महाराज कुआँ क्यों खुदवा रहे हैं। दरअसल रीड जब संयुक्त प्रांत में
थे तब उन्होंने काशी नरेश के साथ मिलकर अनेक कुएँ खुदवाए थे।
दो देश जो साम्राज्यवादी शत्रुता के
साँचे में बंधे थे, के बीच ऐसी घटनाएँ सुनना सुखद अनुभव होता है, इतना सुखद की लोग
इस पर पुस्तकें भी लिख सकते हैं जैसाकि लॉरीन डिविलियमसन ने लिखी
rochak jaankari
ReplyDeleteसुंदर जानकारी.... जहाँ मौका मिले दुःख बाँट लो !
ReplyDeleteये महाराजा ....
ReplyDelete:(
प्रेरक प्रसंग, मानवता के आगे देश की सीमा क्या चीज़ है!
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