Monday, March 25, 2013

डोरेमोन १



बचपन में पढ़ी हुई एक कॉमिक्स का एक चित्र अब भी याद आता है। एक साधु ने एक युवक के साहस से प्रसन्न होकर उसे उड़ने वाली कालीन दी थी। उसे एक टास्क भी दिया था कि इससे राजकुमारी को मुक्त कराओ। वो कालीन को लेकर उड़ गया अपने एक मित्र के साथ, वे सागरों पर उड़े, घने जंगलों के ऊपर से उड़े। सारसों की शुभ्र पंक्ति के साथ उड़े। मुझे यह बहुत एडवेंचरस लगा। एक ऐसा ही चमत्कार मुझे बहुत आकर्षित करता था। जादूगर के पास एक ग्लोब होती थी, वो चाहे जिसे देखना चाहता, उनकी एक्टिविटी देख सकता था। मेरे मन में इस ग्लोब को प्राप्त करने की विशेष इच्छा जागी थी। जादूगर इसका प्रयोग अपने दुश्मनों की एक्टिविटी जानने के लिए करता था। मैं सोचता था कि अगर यह ग्लोब मुझे मिले तो मैं इसमें कुछ और चमत्कार जोड़ना चाहूँगा। जैसे अपने दोस्तों की रूटीन एक्टिविटी जानकर मैं क्या करूँगा। मैं वो चीजें जानना चाहता था जो वे मेरे पीठ पीछे कहते हैं मसलन मेरी तारीफ या मेरी आलोचना। मुझे बचपन से ही नास्तिक पसंद नहीं हैं और कोई भी चमत्कार होता है तो मुझे खुशी होती है क्योंकि लोग कहते हैं कि ईश्वर ने ऐसा किया। मैं एक ऐसा चमत्कार भी चाहता था जो ईश्वर की उपस्थिति इस धरती पर पुष्ट कर दे और बिल्कुल सालिड ढंग से जिसे वैज्ञानिक भी झुठला नहीं सकें। मसलन आकाशवाणी जैसी कोई चीज?
                                              बचपन में कहीं से एक तिनका भी मनोरंजन का मिल जाता है तो उसे हम पकड़ लेते हैं विशेषकर तब जब आप नई जगह में होते हैं। राजिम में दादा जी के गुजर जाने के बाद उनके पुण्यस्मरण में भागवत कथा का आयोजन किया गया। तब मैं दूसरी जमात में था, इस कहानी में कई किस्से सुनने को मिले और बार-बार आकाशवाणी का जिक्र होता। मुझे लगता कि ये बड़ा अच्छा सिस्टम है लेकिन कलियुग में ऐसा क्यों नहीं होता?
                                          वो दुनिया चमत्कारों से भरी थी जिसमें सारे चमत्कार किस्सा-कहानियों में ही मिलते थे। अब सारे चमत्कार हम आँखों के सामने देखते हैं  लेकिन इनसे सुख नहीं मिलता। चाचा चौधरी का कैरेक्टर पहला ऐसा कैरेक्टर था जो चमत्कारों से परे हटकर कंप्यूटर की तरह काम करता था। चमत्कार की जगह कंप्यूटर ने ले ली थी, साबू ज्यूपिटर से आया था। और राका की सीरिज तो अल्टीमेट थी। मुझे लगता है कि आर्मागेडन जैसी फिल्मों की कल्पना राका के फाइनल साल्यूशंस से ली गई होगी। मुझे चाचा चौधरी का वो शहर बहुत अच्छा लगता था जहाँ फ्लैट नहीं होते थे, घरों में चहारदीवारी होती थी।
                                        ऐसे में मिकी डोनाल्ड भी खूब लगते थे, चिल्ड्रन नालेज बैंक में पढ़े हुए कुछ जगहों के किस्से यहाँ सुंदर तरीके से फिल्माए जाते थे। मेरे लिए सबसे रोमांचक एपिसोड वो था जब मिकी डोनाल्ड लैमिंग के पीछे जाते हैं जो समूह में एक साथ हजारों की संख्या में निकलते हैं और समंदर में अपनी जान दे देते हैं।
             बरसों बाद डोरेमोन ने मुझे वैसे ही सुख का अनुभव कराया जैसा कभी चाचा चौधरी को पढ़कर मिलता था। डोरेमोन की दुनिया विलक्षण दुनिया है, वह मुझे गीता के स्थितप्रज्ञ योगी की तरह लगता है, उसके गैजेट्स से मैं अभिभूत हूँ। जैसा दूसरे बच्चों के मन में प्रश्न होता है वैसे ही मेरे मन में भी कि अब डोरेमोन किस गैजेट का इस्तेमाल करेगा। डोरेमोन के पास जो सबसे अद्भुत चीज है वो है टाइम मशीन।

3 comments:

  1. सुंदर विवेचन!!

    होली की हार्दिक शुभकामनायें!!!

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  2. अच्छा विश्लेषण ... डोरेमोन तो पढ़ा नहीं हां चाचा चौधरी को जरूर पढ़ा है ओर वो आज भी गुदगुदाता है मन को ...

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  3. तिलस्मी दुनियां ,सपनों की दुनियां तब भी अच्छी लगती थी ...और आज भी !!!
    क्यों कि ये सिर्फ हमारी होती है .......
    गुज़री यादों का संग अच्छा लगा !
    शुभकामनायें!

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आपने इतने धैर्यपूर्वक इसे पढ़ा, इसके लिए आपका हृदय से आभार। जो कुछ लिखा, उसमें आपका मार्गदर्शन सदैव से अपेक्षित रहेगा और अपने लेखन के प्रति मेरे संशय को कुछ कम कर पाएगा। हृदय से धन्यवाद