Sunday, March 17, 2013

नरेंद्र मोदी




मुझे अमेरिकी संसदीय प्रणाली में प्रेसिडेंशियल डिबेट्स बहुत अच्छी लगती है। भारत में प्रधानमंत्री पद के एकाधिक दावेदारों के चलते ऐसा दृश्य देख पाना संभव नहीं लेकिन प्रेस का सामना कर सकने वाले हिम्मत वाले पालिटिशियन ऐसा संभव कर सकते हैं। कल नरेंद्र मोदी ने इंडिया टूडे कान्क्लेव में हिस्सा लेकर साहस का परिचय दिया, ऐसा मेरा मानना है। साहस इसलिए कहना चाहूँगा कि मोदीत्व की जो ब्रांड छवि मीडिया ने तैयार की है उसके बारे में आम जनता को ज्यादा जानकारी नहीं है इसके नाम पर बस इतना ही कि उन्होंने गुजरात को विकास की नई दिशा प्रदान की, इसके अलावा ज्यादा कुछ नहीं। ऐसे में जब मीडिया आपको भावी प्रधानमंत्री के रूप में देख रहा है तो आपको देश के संबंध में अपने विजन को खुलकर रखना होता है, इस प्रक्रिया में स्वाभाविक है कि कुछ ऐसी बातें भी खुल जाए, जिनसे एक खास वर्ग नाराज हो जाए अथवा आपको अपनी ही पार्टी में अथवा संगठन में वैचारिक मतभेद का सामना कर पाएं और सत्ता हाथ में आने से पहले ही विवादों में घिरकर आपको मिलने वाली नई नौकरी की संभावनाएँ ही खत्म हो जाएं।
              मोदी मीडिया में सीधे आने का साहस कर सके हैं जो राहुल गांधी अब तक नहीं कर पाए हैं। अगर आज वे कान्क्लेव में आएं तो मुझे बहुत खुशी होगी और हम सबको मोदी वर्सेज राहुल की तुलना कर पाने का सुंदर मौका मिल पाएगा। मोदी व्हार्टन में नहीं बोल पाए, मुझे यकीन नहीं था कि वे इंडिया टूडे कान्क्लेव में कुछ सार्थक बातें कर पाएंगे लेकिन उम्मीद के विपरीत वे बहुत अच्छा बोले। मोदी के भाषण में जो सबसे अच्छी चीज लगी, वो उनका आउट आफ बाक्स साल्यूशन थी। जो भी आइडिया उनके पास आए, उन्होंने इन्हें डंप नहीं किया, उसका इस्तेमाल किया। जो बात बुरी लगी वो ये कि वे बार-बार मनमोहन सिंह को नीचा दिखाने की कोशिश कर रहे थे। उन्होंने एक बात कही कि प्रधानमंत्री ने जब मुझे चाय पिलाने बुलाया तो मैंने भी एक आइडिया बताकर एहसान चुकता कर दिया। क्या मेजबान और मेहमान का रिश्ता केवल लेने-देने से ही संबंधित होता है? खैर यह उनके लिए जरूरी भी हो सकता है क्योंकि मनमोहन की नौकरी छुड़वाए बगैर उन्हें यह नौकरी तो मिलने वाली नहीं, फिर भी शायद सारे आउट आफ बाक्स साल्यूशन प्रयोग करने के बाद भी मोदी बुजुर्गों के अनुभव से कुछ सीखना नहीं चाहते, पिछली बार आडवाणी ने मनमोहन पर व्यक्तिगत हमले किए थे और इतिहास सबको मालूम है। पहला सत्र बहुत अच्छा रहा और मोदी ने बता दिया कि उन्हें कमीज की आस्तीन खींचने के अलावा भी बहुत कुछ आता है। राहुल के पास यह सुंदर मौका था, दस साल उनकी सरकार थी, वे इसका प्रयोग कर सकते थे लेकिन उन्होंने नहीं किया, उनके पास कहने के लिए आउट आफ बाक्स कुछ भी नहीं है।
                               दूसरा सत्र बहुत चुनौतीपूर्ण था जिसमें मोदी को सवालों के जवाब देने थे, शुरूआती सवाल सरल थे और मोदी बच गए। एक सवाल सचमुच कठिन आया, यह एफडीआई पर था। मोदी को इसका उत्तर देने में खासी हिचक हुई क्योंकि इस पर पार्टी का मत केंद्र सरकार का विरोधी था, पहले तो उन्होंने संघवाद की दुहाई दी और फिर उत्तर दिया कि इससे छोटे-छोटे उत्पादक तबाह हो जाएंगे। मुझे लगता है कि यह सबसे महत्वपूर्ण प्रश्नों में से एक था। मोदी को प्रमोट करने के पीछे कॉर्पोरेट तबका बहुत सक्रिय है। अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने में वे मोदी का अच्छा इस्तेमाल कर सकते हैं। मोदी उन्हें नाराज नहीं कर सकते थे इसलिए बहुत चतुराई से भरा उत्तर उन्होंने दिया।
                     अगर किसी सज्जन ने अंतिम प्रश्न नहीं पूछा होता तो शायद ये पूरी महफिल प्रायोजित लगती। उन्होंने बहुत दृढ़ता से गुजरात दंगों के बारे में प्रश्न पूछा और कहा कि आप क्या इसके लिए खेद प्रगट करना चाहेंगे। मोदी ने इस प्रश्न का जवाब नहीं दिया। ऐसी महफिल में जो मोदी प्रशंसकों से भरी हुई है यह प्रश्न पूछ लेना बड़ी हिम्मत की चीज है और मैं उन शख्स को सलाम करता हूँ। उनकी आवाज में गजब की दृढ़ता और संवेदनशीलता दिखी। जब हम जलियांवाला बाग में हुए नरसंहार के लिए ब्रिटिश प्रधानमंत्री से यह माँग कर सकते हैं तो मोदी से क्यों नहीं, गुजरात दंगों के समय वो मुख्यमंत्री थे और इस नाते कानून व्यवस्था की पूरी जिम्मेदारी उन पर थी। अगर ये व्यवस्था बिगड़ी और लोगों को जान-माल का नुकसान उठाना पड़ा तो इस पर मुख्यमंत्री अगर खेद जताए तो वो छोटा नहीं हो जाएगा लेकिन मोदी ने यह अवसर एक बार फिर से खो दिया।
                                              

5 comments:

  1. मोदी की सबसे बड़ी चुनौती यही होगी की अपने कुरते पर पड़े जो खून के छीटें हैं उसे वह साफ़ कर दिखायें . यह आसान नहीं होगा. खासकर अगर पूरे देश के नज़रिए से देखें तो एक बहुत बड़ा तबका उन्हें गुनहगार मानता है. ऐसे मैं प्रधानमन्त्री पद पाना उनके लिए काफी चुनौतीपूर्ण होगा.

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  2. पर मैने सुना कि वो सवाल पूछने वाला शख्स वही था जिसने कई साल पहले भी इसी तरह के कार्यक्रम में सवाल पूछा था । कई साल बाद भी वही आदमी क्या संयोग है हिम्मत का भी

    निहार रंजन जी ...मोदी के उपर खून के छींटे हैं तो गोधरा के कारसेवको के जले हुए लोथडे किसके कुर्ते पर हैं

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  3. आखिरी पैरे के प्रश्‍नों के पीछे हाथ धो के पड़ी पत्रकार बिरादरी आपको नहीं लगता बहुत नौसिखिया है........आगे कहने को बहुत कुछ है, पर नहीं समझेंगे बन्‍धु-बान्‍धव। आपकी टिप्‍पणी के लिए बहुत-२ धन्‍यवाद।

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  4. मोदी पर सचमुच ज्यादा पता नहीं है देशवासियों को -यह कवरेज अच्छा लगा !

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  5. आपके लेख को पढना हमेशा ही लाभप्रद होता है .....
    आपको .आपके लेखन को
    शुभकामनायें!
    देर की मजबूरियों को ...नज़र-अंदाज़ करें !

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आपने इतने धैर्यपूर्वक इसे पढ़ा, इसके लिए आपका हृदय से आभार। जो कुछ लिखा, उसमें आपका मार्गदर्शन सदैव से अपेक्षित रहेगा और अपने लेखन के प्रति मेरे संशय को कुछ कम कर पाएगा। हृदय से धन्यवाद