Sunday, March 10, 2013

काइ पो चे और चेतन भगत......




काइ पो चे देखने से एक दिन पूर्व मैं यहाँ पुराने बस स्टैंड स्थित पारख बुक डिपो में किताबें देखने गया था। वहाँ से मैंने अज्ञेय की एक पुस्तक ली, अरे यायावर रहेगा याद। किताब की पेमेंट करते हुए मैंने देखा कि एक महाविद्यालयीन छात्रा जो अपने पिता के साथ आई थी, ने चेतन भगत की एक पुस्तक ली।
                                            मैंने सोचा कि पीढ़ी के एक दशक के अंतर ने कितना कुछ बदल दिया है। हमारे समय में सलमान रूश्दी, विक्रम सेठ और झुम्पा लाहिड़ी युवा वर्ग की रुचि के केंद्र में नहीं थे। गुनाहों का देवता जैसे उपन्यास लिखने वाले धर्मवीर भारती जैसे लेखकों को वे पढ़ना पसंद करते थे। क्लासिकी के परे नॉवेल्स की अलग दुनिया थी जिसमें गुलशन नंदा जैसे लेखकों का राज चलता था।
                                             कभी-कभी मैं सोचता हूँ कि चेतन भगत नहीं होते तो क्या नई पीढ़ी किताबों की दुकानों में आती ही नहीं?  चेतन की उपलब्धि है कि उन्होंने सोशल मीडिया से जुड़ी पीढ़ी को किताबों की लत लगा दी है। अब जब वे चेतन को पढ़ चुके हैं तो विक्रम सेठ को भी पढ़ेंगे और नायपाल जैसे महान लेखकों तक उनकी पहुँच आसान हो पाएगी।
                                     फिर भी किसी एक लेखक की दीवानगी के नकारात्मक असर भी हो सकते हैं। इसका उदाहरण मैंने चेतन भगत के एक प्रशंसक से ही जाना। हुआ यूँ कि अनुभव ने मुझे जयपुर लिटररी फेस्टिवल में हुए एक किस्से की जानकारी दी। फेस्टिवल के दौरान एक मौका ऐसा आया जब चेतन भगत और गुलजार एवं अन्य लेखक प्रेस से मुखातिब हुए। मोर्चा चेतन भगत ने संभाला, उन्होंने कहा कि गुलजार अच्छा लिखते हैं मैंने उन्हें पढ़ा है। चेतन को लगा कि उनके द्वारा दिया गया प्रतिभा का सर्टिफिकेट गुलजार को खुश करेगा, आखिर उन्होंने इतनी जल्दी अपनी फैन फॉलोविंग तैयार की है जो किसी भी पुरानी पीढ़ी के लेखक के लिए ईर्ष्या का विषय हो सकती है? चेतन की टिप्पणी ने गुलजार ही नहीं, लिटरेरी फेस्टिवल में आए तमाम लेखकों के लिए झटके का कार्य किया? गुलजार ने केवल इतना कहा कि चेतन मेरा मूल्यांकन कर सकते हैं बशर्ते कजरारे गीत के बोल तेरी बातों में किमाम की खुशबू है तेरा आना भी गर्मियों की लू है का अर्थ बता दें। गुलजार ने अपनी एक ही टिप्पणी से चेतन को ध्वस्त कर दिया था। किसी लेखक की लोकप्रियता का पैमाना उसके पाठकों की संख्या नहीं होती, उसके लिखे की गहराई से ही उसका आकलन किया जा सकता है। चेतन भगत और गुलजार में अगर तुलना करता हूँ तो छत्तीसगढ़ी की एक कहावत याद आती है लोड़हा कहाय, मैं महादेव के भाई।
                                      यह किस्सा मुझे बहुत भाया और मैंने नेट में इसकी सर्च की। दो परिणाम निकले, एक में न्यूज पर कमेंट की व्यवस्था भी थी। न्यूज से व्यथित होकर चेतन के एक प्रशंसक ने लिखा कि चेतन कभी आलोचनाओं की परवाह मत करो, पुरानी पीढ़ी के थके हुए लोग तुम्हारी प्रतिभा से ईर्ष्या करेंगे, उन्हें जलने दो, तुम बढ़ते जाओ। इस कमेंट पर मुझे बहुत आश्चर्य हुआ, शायद इस युवक ने कभी गुलजार की नज्म नहीं सुनी होगी अथवा गुलजार की कवित्व की गहराई की थाह नाप पाने की समझ उसके भीतर नहीं होगी।
                                   व्यक्तिगत रूप से मुझे चेतन से कोई नाराजगी नहीं, हो सकता है कि वे उस समय भाषा का प्रयोग करने में सजग न रहे हों, उन्होंने युवा वर्ग को अपनी आवाज दी है, उनकी भाषा में कैंपस की खुशबू है उनके पात्र मस्ती की पाठशाला से आते हैं। कुछ कर गुजरने का जज्बा उनके भीतर होता है। काइ पो चे उनकी पुस्तक थ्री मिस्टेक्स ऑफ माइ लाइफ पर आधारित है।
                                                   निर्देशक के ऊपर किसी फिल्म का कितना दारोमदार होता है यह पता चलता है काइ पो चे और थ्री इडियट को देखकर। दोनों ही युवाओं की कहानी लेकिन एक ऐसी कहानी जिसमें मनोरंजन और मेसेज कहीं भी अलग-अलग नहीं दिखते, जो कला राजू हीरानी में है वो अभिषेक कपूर में नहीं। काइ पो चे का पहला हिस्सा मरा-मरा सा लगता है। जो रुचिकर है वो दीव के कुछ दृश्य जो दोस्त छुट्टी में बिताते हैं।
                                 फिल्म की असल उपलब्धि दूसरे भाग में है। दंगों के असल दर्द को न तो अखबारों की सुर्खियों में महसूस किया जा सकता है न किसी कट्टरपंथी नेता के भड़काऊ भाषण में। इस पीड़ा को कला के सजीव माध्यम में महसूस किया जा सकता है, सिनेमा के पर्दे में इसे जिया जा सकता है। काइ पो चे यह संदेश देने में सफल हुई है। पहले गोधरा और फिर हुए गुजरात दंगे। दंगों में उभर आने वाले इंसानी वहशियत को उभारने में फिल्म पूरी तरह सफल रही है।
                                                          इस फिल्म ने बॉलीवुड को एक नया हीरो भी दिया है सुशांत राजपूत, इस युवा में बहुत जोश है और एक्टिंग में जान लाने के लिए जरूरी इमोशन भी। इसका अंदाज भी बनावटी नहीं, एक आम युवा की सहजता इसके भीतर है। अब जब चेतन भगत के सारे उपन्यासों पर बॉलीवुड फिल्म बना चुका है आशा की जानी चाहिए कि वो विक्रम सेठ, अमिताभ घोष और अरविंद अडिगा पर भी दृष्टि डालेगा और इसी बहाने किताबों की दुकानें भी गुलजार हो जाया करेंगी।

11 comments:

  1. किसी लेखक के प्रति अनुराग होना अच्छी बात है लेकिन अन्धविश्वासी तेवर अच्छा नहीं. लोकप्रिय लेखन अलग चीज है लेकिन टिकता वही है जिसमे माद्दा हूँ. पिछले महीने १४ किताबें खरीदी. सारी १९७० से पहले की प्रकशित पुस्तके थे. अगर उनमे वो बात नहीं होती तो शायद मन में खरीदने की ललक कभी नहीं होती.

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  2. सदा की तरह पढने योग्य लेख ,सुंदर समीक्षा ,निष्पक्ष विचार |ऊँचाई तो बहुत छू लेते है ,पर उसे पकड़ कर अपने कब्ज़े रखना कुछ को ही नसीब होता है और गुलज़ार साहब वो हस्ती हैं ......
    शुभकामनायें!

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  3. सवाल यह है की लेखन और लेखक के बीच बड़प्पन का बोध क्यों हो
    अब तो लेखन कम नाम ज्यादा बिकता है
    बहुत सार्थक लिखा है आपने आज के लेखन पर

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  4. पढ़ने की नई उम्र में रेंज चेतन भगत से गुलजार तक होना चाहिए. ऐसा नहीं कि गुलजार का लेखन भी प्रश्‍नातीत स्‍थापित है.

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  5. बहुत बढ़िया ......थोड़ा बहुत तो उम्र का भी तकाज़ा है ...अचनक मिले फेम ...को संभाल पाने के लिए एक परिपक्व दिमाग भी चाहिए ...सिर्फ अच्छा लिखना ही काफी नहीं ..एक अच्छा लेखक होने से पहले एक अच्छा इंसान होना भी ज़रूरी है ....अगर यह गुण उसमें है ...तो वह निश्चित ही बहुत दूर जायेगा ..अन्यथा नहीं ...!!!

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  6. बहुत रोचक आलेख..काई पो चे अभी तक देखी नहीं है, लेकिन अब देखने का मन है..सुंदर समीक्षा..

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  7. क्या अच्छा है क्या बुरा साहित्य ... ये समाज में सजग पाठक तय करते हैं ... हर किसी की अपनी पहचान है ... ओर उपलब्धि उपलब्धि ही होती है ...
    काई पोचे अभी तक देखि नहीं ... लगता है देखनी पड़ेगी अब ...
    आपका लेख विस्तृत है ... चर्चा को नया आयाम देता है ...

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  8. बहुत ही उम्दा और रोचक लिखते है आप

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  9. इसमें कोई शक नही कि चेतन भगत और गुलजार का मुकाबला नही । जैसे पुरानी फिल्मो और गानो के मुकाबले आज के गाने कहीं नही ऐसे ही

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  10. Bahot hi badhiya lekh, Aur bahot hi gahrai ke sath aapne har chij ko likha hai From How they do that

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आपने इतने धैर्यपूर्वक इसे पढ़ा, इसके लिए आपका हृदय से आभार। जो कुछ लिखा, उसमें आपका मार्गदर्शन सदैव से अपेक्षित रहेगा और अपने लेखन के प्रति मेरे संशय को कुछ कम कर पाएगा। हृदय से धन्यवाद