Wednesday, June 19, 2013

आज तक......... सबसे तेज?




२५ मई को जब दरभा घाटी में देश का सबसे बड़ा नक्सल हमला हुआ तब रात दस बजे मैंने आज तक चैनल लगाया। देश पर आई विपदा को आज तक किस रूप में देखता है। केवल तीन मिनट में इस त्रासदी को निपटा दिया गया और मैच फिक्सिंग पर खबरें दिखाई जाने लगी। चार दिनों से जब पूरा देश उत्तराखंड की चिंता कर रहा है। आज तक को बड़ी चिंता नीतिश सरकार की है। कल का प्राइम टाइम नीतिश कुमार और नरेंद्र मोदी पर कुर्बान रहा। अंत में रिपोर्टर श्वेता सिंह ने पुण्य प्रसून वाजपेयी की स्टाइल में बड़े हास्यास्पद तरीके से एक लीची को दिखाते हुए बिहार की राजनीति की इससे तुलना की। खैर बिहार में हो रहे घटनाक्रम देश की राजनैतिक रूपरेखा तय करेंगे इसलिए प्राइम टाइम पर इस खबर के दिखाये जाने को किसी हद तक तर्कसंगत ठहराया जा सकता है लेकिन जब हजारों लोग हिमालय में जिंदगी और मौत का सामना कर रहे हैं तब आज तक में प्राइम टाइम में क्रिकेट में लंका फतह कर लो दिखाया जाना बेहद अश्लील लगता है। इसके तुरंत बाद बिहार में नई राजनैतिक परिस्थितियों पर एक सर्वे दिखाया जाना लगा।
     शाम पाँच बजे मैंने अब एबीपी न्यूज बन चुके स्टार न्यूज में एक खबर देखी। यमुना खतरे के निशान से ऊपर बह रही है लेकिन दिल्ली में किसी तरह से बाढ़ की आशंका नहीं है अफवाहों से सावधान रहें। लेकिन इंडिया न्यूज में नजारा ही दूसरा था। इसकी हेडिंग थी आज की रात बेहद सावधान रहो दिल्ली। सीधे नहीं कहा गया लेकिन आशय कुछ ऐसा ही डराने वाला था कि दिल्ली वालों आज की रात तुम्हारे लिए कत्ल की रात होगी। चूँकि पहाड़ में टीवी बंद होगा और अन्य लोगों को पहाड़ से क्या सरोकार होगा, इसलिए आज तक ने भी दिल्ली के आसन्न संकट पर समाचार लगातार दिखाया। जो संकटग्रस्त हैं उनके लिए अब क्या किया जा सकता है।
                                                भाजपा चुनाव समिति के प्रमुख नरेंद्र मोदी विधानसभा चुनावों पर गणित जमाते दिखे और राहुल तो नजर ही नहीं आ रहे। संकट की इस घड़ी में देश को खुलकर उत्तराखंड के साथ खड़ा होना था लेकिन अफसोस पहाड़ों से नीचे मातम जैसा कोई माहौल नहीं है। जश्न की तैयारी चल रही है लंका फतह होने पर ग्रैंड पार्टी होगी। जब पुरुष सर्वे से बोर हो जाते हैं तो टीवी में महिलाओं के सीरियल शुरू हो जाते हैं। आखिर हादसों को कौन रोक सकता है, जिंदगी तो चलनी ही चाहिए?

2 comments:

  1. टी आर पी एक ऐसी कडवी सच्चाई है जो सम्वेद्नाओंकी बड़ी निर्ममता से हत्या कर देती है .....यह आक्रोश उसी संवेदन हीनता का एक ऑफ़शूट है ....ऐसी परिस्थ्थियों के रहते न जाने कितने आक्रोश अपनी ही गूँज में घुटकर रह जाते हैं.....कर कोई कुछ नहीं कर पाता

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  2. इसी भाव का कुछ >> http://corakagaz.blogspot.in/2013/07/hight-or-distance.html

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आपने इतने धैर्यपूर्वक इसे पढ़ा, इसके लिए आपका हृदय से आभार। जो कुछ लिखा, उसमें आपका मार्गदर्शन सदैव से अपेक्षित रहेगा और अपने लेखन के प्रति मेरे संशय को कुछ कम कर पाएगा। हृदय से धन्यवाद