इस मामले में व्रत कथा सुनने में मैं अधिक आनंद का अनुभव करता हूँ। पुराणों
में उल्लेखित राष्ट्रीय स्तर की कहानियों की तुलना में मुझे छत्तीसगढ़ में व्रत के
अवसर पर कही जाने वाली कथाएँ अधिक अच्छी लगती हैं। कमरछठ कथा की एक कहानी सुनी थीं
जिसमें अपने संतान को प्राप्त करने के लिए एक महिला को छह टास्क दिए गए थे और सबके
सब बेहद कठिन।
लेकिन सत्यनारायण व्रत कथा सबसे स्पेशल है। इति स्कंद पुराणे, रेवा
खंडे, जम्बु द्वीपे शब्द का जब इस व्रत कथा में उद्घोष होता है तो लगता है कि जैसे
यह कथा परोक्ष में भारत भूमि का आख्यान कर रही है।
पंचतंत्र की तरह ही एक कथा में कई
कथाएं गुंथी हुई होती हैं। नैमिषारण्य में घने जंगलों के बीच सौनकादि ऋषि इस कथा
का आरंभ करते हैं। कथा की महिमा यहीं से शुरू होती है। नारद भगवान सत्यनारायण को
संदेश देते हैं कि मृत्युलोक में लोग बड़े दुखी है उन्हें आर्थिक कष्ट है, संतान
नहीं है इसका उपाय किया जाना चाहिए, तब श्री भगवान उन्हें सत्यनारायण व्रत कथा की
सलाह देते हैं।
यह बिंदु मुझे बहुत खास लगता है। यहाँ भगवान मृत्यु लोक के कष्टों को दूर
करने की बात करते हैं। आम आदमी को मोक्ष नहीं चाहिए, उसे दो वक्त की रोटी चाहिए,
अपना अस्तित्व इस दुनिया में बनाये रखने संतति चाहिए। पूरी कहानी भौतिक कष्टों पर
केंद्रित रहती है और उनसे मुक्त करती है।
यह कहानी बहुत प्रोग्रेसिव है। जब
लीलावती संतान की कामना से भगवान सत्यनारायण का व्रत रखती है तो उसे एक अति सुंदर
कन्या की प्राप्ति होती है। इस घटना का बहुत सुंदर वृतांत है। कन्या के आने से घर
में खुशियों का पारावार नहीं रहा। यह भगवान सत्यनारायण का इस दंपति को उपहार था।
अगर हमारे भगवान इस दंपति को पुत्री की जगह पुत्र जानबूझकर देते तो हमें लग सकता
था कि हमारे ईश्वर भी लड़कियों के प्रति भेदभाव रखते हैं लेकिन कितनी अद्भुत और
अच्छी बात है कि छठवीं शताब्दी का समय है और लड़की के आने का स्वागत किया जा रहा
है।
कलावती
के पिता साधु बनिया भद्रशीला नदी के किनारे निवास करते थे। भद्रशीला सोन नदी को
कहा जाता था, जरूर पटना के आसपास यह दंपति निवास करता होगा। स्कंद पुराण के इस
सुंदर हिस्से में नदियों के कितने प्यारे नाम सुनने मिलते हैं रेवा, भद्रशीला। जब
आर्य इस पुण्यभूमि में आए होंगे तो उन्होंने इन नदियों का नामकरण किया होगा और कुछ
नदियों का तो मूल नाम ही गायब हो गया। मसलन क्षिप्रा को स्थानीय भाषा में क्या
कहते हैं मुझे नहीं मालूम। भारत की सबसे बड़ी नदी ब्रह्मपुत्र का नामकरण आर्यों का
उपहार है। शायद इसे स्थानीय भाषा में लोहित भी कहते हैं लेकिन यह भी संस्कृत शब्द
लौहित्य का अपभ्रंश है।
जब
कलावती का ब्याह होता है तब उसके पिता समुद्रपार व्यापार करते हैं। वे रत्नपुर नगर
जाते हैं जहाँ चंद्रकेतु नामक राजा राज्य करता था। रत्नपुर नगर मेरे लिए मिथकीय ही
रह जाता लेकिन मुझे तब सुखद आश्चर्य हुआ जब मैंने डिस्कवरी के लोनली प्लैनेट में
श्रीलंका में स्थित इस नगर को देखा, यहाँ आज भी परंपरागत तरीके से कीमती रत्न
निकाले जाते हैं जो संभवतः आज भी साधु बनिया की आने वाली पीढ़ी के एक्सपोर्टर बन
चुके बच्चे यहाँ ले आते होंगे।
कथा में पूँजीवाद पर व्यंग्य भी है। जब साधु
वैश्य और उनके दामाद खूब धन-धान्य प्राप्त कर व्यापार के लिए बंदरगाह में लौटने के
लिए कूच करने की तैयारी करते हैं तब सुबह-सुबह दंडिन स्वामिन आते हैं और पूछते हैं
कि बता तेरे पास क्या है? साधु वैश्य कहता है कि इसमें फल-पत्तियों के सिवा कुछ भी
नहीं है। दंडिन स्वामी कहते हैं तथास्तु और सारे रत्न सचमुच फल-पत्तियों में बदल
जाते हैं। यह कहानी सांसारिक दारिद्रय और यह दारिद्रय दूर होने पर मनुष्य के अंदर
अहंकार के रूप में चरित्रगत दारिद्रय पैदा हो जाने की कहानी है। हर सुखी परिवारों
में यह कहानी जब सत्यनारायण व्रत कथा के रूप में सुनाई जाती है तो कहीं न कहीं
साधु बनिया और उसकी स्त्री यह सुनती हैं और अपने आचरण के प्रति सावधान होती है।
कथा सुनी भी है, पढ़ी भी और पढ़ने को माना भी किया है लेकिन इस पोस्ट के कारण उसे आज एक अलग ही दृष्टि से देख सका, धन्यवाद!
ReplyDeleteवाह ...अद्भुत व्याख्या ,इस कथा में कितनी गहराई तक आपने गोता लगाया होगा स्पष्ट है , बहुत खूब .....काश हमारी इन पोराणिक कथाओं और ग्रंथों को आज का मानव [समाज ] कुछ प्रतिशत भी समझ सके तो देश की तस्वीर ही बदल जाए ,
ReplyDeleteअच्छी टीका.
ReplyDeleteवैसे भद्रशीला/सोन का उद्गम छत्तीसगढ़ में और मुख्य भाग मध्यप्रदेश में है.
सच कहूं तो कभी कभी मुझे लगता है ये कथाएं न सिर्फ समाज को जागृत रखने के लिए होती थीं बल्कि उसे दिशा देने और कर्म पथ पे अग्रसर रहने के लिए भी प्रेरित करती थीं ... पर आज तेज़ी के साथ घाट रहा है इनका प्रचलन ... सिर्फ अपने आप को आधुनिकता की दौड़ में रखने के लिए ...
ReplyDeleteआपका विश्लेषण उचित और गहरा है ...
अच्छी विश्लेषण
ReplyDeleteसही कहा..
ReplyDeleteसंकलन योग्य अनूठी रचना !!
ReplyDeleteबधाई आपको !
साधु बनिया ,लीलावती व कलावती की कथा की शुरूआत(वर्तमान कोचारी ग्राम सभा-जौनपुर) जिस भद्रशीला नदी यानि की भद्रकाली की प्रतिमा के निकट की बिष्धनी नदी है यह वरूणा नदी से संगम करती है । जिला वाराणसी है
ReplyDeleteGood
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