हमारा बचपन शीतयुद्ध के साये में बीता। शीतयुद्ध के दौर में सबसे बड़ा खतरा तीसरे विश्वयुद्ध का था और हम बार-बार सुनते थे कि तीसरे विश्वयुद्ध में परमाणु बम का प्रयोग होगा जिससे समूची दुनिया नष्ट हो जायेगी। इसका बड़ा असर मेरे अवचेतन मन में हुआ और मैं यह समझने लगा कि कभी भी दुनिया नष्ट हो सकती है। सोवियत संघ के बिखरने के बाद तीसरे विश्वयुद्ध का खतरा अब नहीं रहा लेकिन मन में बैठी हुई बात अक्सर नहीं निकलती। अगले तीस या चालीस साल बाद या अगले सौ साल के बाद दुनिया कायम रहेगी, इस पर मुझे संशय होता है। यह प्रश्न मेरे मन की भीतरी तहों में था लेकिन इसे प्रत्यक्ष रूप तब मिला जब स्टीफन हॉकिंग का एक कोटेशन पढ़ा। उनका कहना था कि अगले कुछ वर्षों में दुनिया नष्ट हो जाएगी क्योंकि मनुष्य सारे संसाधनों का प्रयोग कर चुका होगा और मनुष्य जाति को अगर जिंदा रहना है तो उसे एलियंस की तरह ही स्पेस के ठिकानों पर कब्जा करना होगा जहाँ वो पृथ्वी की तरह ही नये सिरे से संसाधनों का प्रयोग कर सके।
Monday, June 17, 2013
समय यात्रा के हमारे जोखिम
हमारा बचपन शीतयुद्ध के साये में बीता। शीतयुद्ध के दौर में सबसे बड़ा खतरा तीसरे विश्वयुद्ध का था और हम बार-बार सुनते थे कि तीसरे विश्वयुद्ध में परमाणु बम का प्रयोग होगा जिससे समूची दुनिया नष्ट हो जायेगी। इसका बड़ा असर मेरे अवचेतन मन में हुआ और मैं यह समझने लगा कि कभी भी दुनिया नष्ट हो सकती है। सोवियत संघ के बिखरने के बाद तीसरे विश्वयुद्ध का खतरा अब नहीं रहा लेकिन मन में बैठी हुई बात अक्सर नहीं निकलती। अगले तीस या चालीस साल बाद या अगले सौ साल के बाद दुनिया कायम रहेगी, इस पर मुझे संशय होता है। यह प्रश्न मेरे मन की भीतरी तहों में था लेकिन इसे प्रत्यक्ष रूप तब मिला जब स्टीफन हॉकिंग का एक कोटेशन पढ़ा। उनका कहना था कि अगले कुछ वर्षों में दुनिया नष्ट हो जाएगी क्योंकि मनुष्य सारे संसाधनों का प्रयोग कर चुका होगा और मनुष्य जाति को अगर जिंदा रहना है तो उसे एलियंस की तरह ही स्पेस के ठिकानों पर कब्जा करना होगा जहाँ वो पृथ्वी की तरह ही नये सिरे से संसाधनों का प्रयोग कर सके।
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आपने इतने धैर्यपूर्वक इसे पढ़ा, इसके लिए आपका हृदय से आभार। जो कुछ लिखा, उसमें आपका मार्गदर्शन सदैव से अपेक्षित रहेगा और अपने लेखन के प्रति मेरे संशय को कुछ कम कर पाएगा। हृदय से धन्यवाद