Wednesday, September 29, 2010

सहिष्णुता की समृद्ध परंपरा रही है भारत में

कल दोपहर साढ़े तीन बजे अयोध्या विवाद का पटाक्षेप हो जायेगा, कम से कोर्ट के स्तर पर तो यह मामला निपट जायेगा। सरकार ने इस मुद्दे पर विभिन्न संगठनों से शांति की अपील की है। भारत की जनता सहिष्णु है और सभी दूसरे मतावलंबियों की धार्मिक आस्था का भी आदर रखती है इसके बावजूद आवेश के क्षणों में गलतियां भी हो सकती हैं। अयोध्या पर चाहे जो फैसला आये, इस पर हमारी प्रतिक्रिया भारत की गौरवशाली सामासिक संस्कृति के दायरे में होनी चाहिये। इस समृद्ध विरासत की झलक स्वामी विवेकानंद ने शिकागो में हुए धर्म सम्मेलन में दिये गये भाषण में कही थी। उन्होंने कहा था कि भारत ने उस समय पारसी और यहूदी धर्म को आश्रय दिया था जब इन्हें अपने मूल देश को छोडऩा पड़ा था। भारत में इन धर्मों ने अपनी पहचान अक्षुण्ण रखी। महमूद गजनवी की विरासत भारत के लिये हमेशा पीड़ादायी रही है और महमूद के बाद उसके बेटे गाजी सालार मसूद ने भी लगातार भारत पर आक्रमण किये। दिलचस्प बात यह है कि एक ऐसे ही आक्रमण में जब बहराइच में गाजी सालार मसूद मारा गया तब यहां उसकी कब्र बना दी गई, समय बीतने पर मुस्लिम धर्मावलंबी यहां दुआएं मांगने लगे, यह बात प्रचलित हो गई कि मसूद के मकबरे में मांगी गई दुवाएं कबूल होती हैं। धीरे-धीरे उनके उस्र में हिंदू भी जाने लगे, यह मेला हर साल लगता है, अब हिंदू कहते हैं कि सालार मसूद सूफी संत हैं और सबकी मन्नतें पूरी करते हैं। अपनी आस्था के दायरे से बाहर के लोगों को भी सम्मान देना अनोखी बात लग सकती है लेकिन भारत में इसके सैकड़ों उदाहरण है जहां हिंदू संतों और मुस्लिम पीरों ने अपनी गहरी अध्यात्मिकता से दूसरे संप्रदाय के लोगों को प्रभावित किया। निजामुद्दीन औलिया के दरगाह में अनेक हिंदू भक्त आते थे और वह भी भारत की यौगिक परंपरा से गहराई से प्रभावित थे। मोहम्मद तुगलक जैसे बादशाहों के दरबार में हिंदू योगी लगातार आते रहते थे। भारत में बाबर की छवि भले ही आक्रांता की रही लेकिन उनके उत्तराधिकारी भारतीय परंपरा में इस तरह रच-बस गये कि ऐसा लगा कि उनकी जड़ें हमेशा से भारतीय संस्कृति में जमी थी। अनुश्रुति है कि बाबर ने अपने अंतिम क्षणों में हुमायूं से भारत में उदारता और धार्मिक सहिष्णुता की नीति पर चलने का आग्रह किया था। अकबर का समय तो धार्मिक सहिष्णुता का स्वर्ण काल था। फारसी में रामायण, महाभारत और भागवत पुराण जैसे ग्रंथों का अनुवाद हुआ। अकबर ने ऐसी फिजा बनाई जहां रूढि़वादिता के लिये कोई जगह नहीं थी। अबुल फजल ने अपनी पुस्तक अकबरनामा में धार्मिक कट्टरता की निंदा करते हुए लिखा है कि जब तकलीद की हवा चलती है तब दानिशमंदी की परत धुंधली पड़ जाता है(जब अंधविश्वास की हवा चलती है तब बुद्धिमानी की आंख पर परदा पडऩे लगता है)। अकबर की परंपरा को जहांगीर ने कायम रखा, उसने वेद और कुरान को एक ही तरह का पवित्र स्रोत बताया। धार्मिक सहिष्णुता के क्षेत्र में दाराशिकोह का नाम सबसे ऊंचा है। उन्होंने काशी के पंडितों की मदद से बावन उपनिषदों का अनुवाद कराया और मज्म उल बहरीन नामक पुस्तक लिखी जिसमें उन्होंने उपनिषदों की तुलना कुरान से की। औरंगजेब का शासनकाल धार्मिक कट्टरता के लिये जाना जाता है लेकिन इस बात के दो प्रमाण मिले हैं जिसमें चित्रकूट और बनारस के मंदिरों को बादशाह द्वारा दान दिये जाने का उल्लेख है। बहादुरशाह जफर के समय में लाल किले के भीतर दुर्गापूजा मनाये जाने का उल्लेख मिलता है। बंगाल में प्रचलित परंपरा के अनुकूल सुल्तान मीर जाफर ने मरने से पहले तुलजा भवानी का जल पीया था। 1857 के ठीक पहले जब अयोध्या विवाद शुरू हुआ तब वाजिद अली शाह को कलकत्ता भेज दिया गया, ऐसी अफवाहें फैली कि उन्हें लंदन भेजा जा रहा है। तब लखनऊ के हिंदुओं ने रघुनाथ मंदिर में जाकर नवाब के विरूद्ध होने वाले षडय़ंत्रों को रोकने की प्रार्थना की। इस देश में असहिष्णुता भी हुई है लेकिन सहिष्णुता की परंपरा इतनी गहरी है कि आसानी से इस देश के सेक्युलर चरित्र को नष्ट नहीं किया जा सकता।

3 comments:

  1. Bahut Badiyaa!!

    Meghana
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  2. Hindi was my second language at school, but I've just lost touch over the years.....

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    Thanks!!
    -Pallavi

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  3. Hey, I chose 'translate page to english' and it actually did so!!! Stunned. But I guess its not perfect translation, but word to word translation. Still, am quite stunned. Is this a feature of Blogspot??

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आपने इतने धैर्यपूर्वक इसे पढ़ा, इसके लिए आपका हृदय से आभार। जो कुछ लिखा, उसमें आपका मार्गदर्शन सदैव से अपेक्षित रहेगा और अपने लेखन के प्रति मेरे संशय को कुछ कम कर पाएगा। हृदय से धन्यवाद