Friday, September 17, 2010

राहुल में दिख रहा कांग्रेस का परिपक्व चेहरा

पिछले सौ सालों से भारत का भविष्य नेहरू-गांधी परिवार की धूरी पर टिका है और नेहरू के बाद आने वाले हर उत्तराधिकारी पर भारतीय जनता की नजर रहती है। जब इंदिरा ने नेहरू की विरासत को संभाला, तब उन्होंने अपनी सोच को जनता और पार्टी के समक्ष सीधे रखने की बजाय संयम का रास्ता अपनाया। उन्हें गूंगी गुडिय़ा की संज्ञा दी गई लेकिन जब यह गूंगी गुडिय़ा मुखर हुई तो उसने बहुतों की बोलती बंद कर दी। इंदिरा के बाद उनकी विरासत संभालने की जिम्मेदारी संजय गांधी की थी, अक्सर कहा जाता है कि इंदिरा के प्रशासन पर संजय गांधी का अत्याधिक प्रभाव था और इमरजेंसी जैसे सख्त फैसलों में पर्दे के पीछे संजय गांधी कार्य कर रहे थे लेकिन इसे बढ़ाचढ़ाकर नहीं देखना चाहिये क्योंकि चाहे राजाओं की प्रिवीपर्स समाप्ति का मसला हो अथवा बांग्लादेश मुक्ति संग्राम, प्रधानमंत्री के रूप में इंदिरा के पास ही सारे फीडबैक थे और उन्होंने सख्त फैसले किये। अगर संजय का इन निर्णयों में भी प्रभाव मान लिया जाये तो भी आपरेशन ब्लू स्टार की व्याख्या कैसे की जायेगी जो इंदिरा के सबसे सख्त फैसलों में से एक माना जाता है। इंदिरा की मौत के बाद राजीव गांधी आये वह अनिच्छा से राजनीति में आये थे इसलिये उनसे किसी बड़ी राजनीतिक सोच की आशा नहीं की जा सकती थी। जहां तक राहुल गांधी की बात करें तो शुरूआती दौर में उनकी छवि को बेहद कमजोर आंका गया। उनकी मुखर बहन प्रियंका पर राजनीतिक विश्लेषकों ने दांव लगाने शुरू कर दिये थे। अगर राहुल की सक्रियता पर नजर डालें तो उन्होंने महात्मा गांधी का तरीका अपनाया। कांग्रेस में प्रवेश करने से साल भर पहले गांधी देश भर में घूमे थे, कांग्रेसी नेताओं से मिले थे और कांग्रेस की विचारधारा और इसके संगठन को करीब से समझा था। राहुल ने भी शुरूआती सालों में यही अध्ययन किये। इसके बाद वह दलितों के घरों में गये। कांग्रेस का हाथ गरीबों के साथ, को अगर सही मायने में व्यक्त करना था तो समाज के सबसे शोषित वर्ग से मिलना जरूरी थी। राहुल ने जब सार्वजनिक मंचों से अपने भाषण देने शुरू किये तो वहां से उनका एजेंडा और उनका व्यक्तित्व अधिक स्पष्टता से झलका। वह विरोध की राजनीति में भरोसा नहीं करते, विकास की बात करते हैं। जब वह भाषण देते हैं तो उनके भीतर से ऐसा युवा झलकता है जो बेहद उत्साहित है और चीजों को बदलने का यकीन रखता है भले ही जटिल मुद्दों का वह सीधा समाधान प्रस्तुत करते हैं और परिपक्व राजनेता की दृष्टि उनके भाषणों से छनकर नहीं आती। इसके बावजूद देश उनके भीतर एक ऐसे युवा नेता को देख रहा है जिसमें राजनीति के छल-छिद्र नजर नहीं आते। इसके बावजूद सार्वजनिक सभाओं में जो चेहरा दिखता है वह अधिकतर प्रायोजित होता है। आपके भाषण दूसरों द्वारा लिखे जाते हैं। स्थानीय नेता लोकल मुद्दों के आधार पर भाषण में जोड़तोड़ कर देते हैं। लेकिन जब सामना प्रेस का करना हो तो आपका असली चेहरा दिख ही जाता है। कोलकाता में हुए प्रेस कांफ्रेंस के दौरान राहुल ने पत्रकारों के सवालों का जिस तरह से जवाब दिया, उससे लगता है कि अब वह परिपक्व राजनीति की ओर बढ़ रहे हैं। उन्हें युवराज कहा जा रहा है लेकिन वह इसके अहम का प्रदर्शन नहीं करते। उन्हें ममता बेनर्जी ने प्रवासी पक्षी कहा लेकिन उन्होंने हँसते हुए इश आरोप को टाल दिया। सबसे दिलचस्प बात जो उन्होंने कही वो यह थी कि हम हाथ मिला रहे हैं सिर नहीं झुका रहे। सत्तर के दशक में कांग्रेस की बंगाल में अंतिम बार सरकार बनी थी, सिद्धार्थ शंकर रे तब बंगाल के मुख्यमंत्री बने थे। इसके बाद बंगाल में कांग्रेस जैसे गायब हो गई। राहुल अपनी इसी जमीन की तलाश में बंगाल लौटे। उत्तरप्रदेश में अपनी राजनीतिक विरासत को संभाले बगैर राहुल देश की राजनीति को स्थिरता से नहीं संभाल सकते। राहुल ने इसके लिये रणनीति बनाई है और वह इसमें सफल होते दिख रहे हैं। उनके पिता एक्सीडेंटली राजनीति में आये थे, वह सोची समझी रणनीति से राजनीति कर रहे हैं राहुल जिस तरह से सार्वजनिक जीवन में अपनी सक्रियता बढ़ा रहे हैं यह बात और अच्छी तरह से जनमानस को स्पष्ट होती जा रही है।

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आपने इतने धैर्यपूर्वक इसे पढ़ा, इसके लिए आपका हृदय से आभार। जो कुछ लिखा, उसमें आपका मार्गदर्शन सदैव से अपेक्षित रहेगा और अपने लेखन के प्रति मेरे संशय को कुछ कम कर पाएगा। हृदय से धन्यवाद