राजधानी की अपनी पहली यात्रा में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी ने मिशन 2014 के संबंध में अपनी रणनीति के अहम सुराग छोड़े हैं। प्रेस वार्ता के दौरान उन्होंने अपनी पूरी बात महंगाई के इर्द-गिर्द रखी। उन्होंने पत्रकारों से आग्रह भी किया कि अगर महंगाई से संबंधी प्रश्न पूछे जायें तो उन्हें ज्यादा खुशी होगी। प्रेस नोट में लिखी गई सारी बात भी महंगाई के आसपास केंद्रित थी। जाहिर है जनअसंतोष का एक बड़ा मुद्दा गडकरी के पास है और वह इसे हर स्तर पर भुनाना चाहेंगे। गडकरी ने अपने प्रेस नोट में जो बातें कहीं, वह सारे मुद्दे और इससे संबंधित सभी तथ्य प्रदेश भाजपा प्रभारी जगत प्रकाश नड्डा ने अपनी प्रेसवार्ता में कही थी। स्पष्ट रूप से भाजपा अपने हमले के केंद्र में महंगाई को रख रही है। पिछले कुछ समय से गडकरी अपने विवादास्पद बयानों के लिये मीडिया के सुर्खियों में रहे थे जिसमें प्रधानमंत्री की कार्यप्रणाली पर उठाई गई एक गंभीर टिप्पणी भी चर्चा में रही थी। आहत प्रधानमंत्री ने लाल किले की प्राचीर से राजनीति में व्यक्तिगत टिप्पणी की बढ़ती प्रवृति पर चिंता जताई थी। गडकरी अपनी पूरी यात्रा में विनम्र नजर आये। उन्होंने पूरी प्रेसवार्ता के दौरान और कार्यकर्ता सम्मेलन में भी गांधी परिवार पर व्यक्तिगत टिप्पणियां नहीं की। गडकरी शायद इस बात को और भी शिद्दत से महसूस कर रहे हैं कि लोकसभा चुनाव 2009 में किये गये व्यक्तिगत हमलों से पार्टी को नुकसान ही हुआ और अंतत: पार्टी सही मुद्दे नहीं उठा पाई। मिशन 2014 की तैयारी के लिये गडकरी जिस मुद्दे पर सबसे ज्यादा ध्यान दे रहे हैं वह है भाजपा शासित प्रदेशों में सुशासन। वह भाजपा शासित प्रदेशों को एक तरह से देश के लिये विकास के मॉडल के रूप में दिखाना चाहते हैं ताकि मिशन 2014 के लिये देश के समक्ष आदर्श रख सकें। इसके लिये वह नीतिगत स्तर पर इन राज्यों को करीब लाना चाहते हैं। यही वजह है कि उन्होंने मंत्रिपरिषद के साथ हुई बैठक में मोदी मॉडल के विभिन्न पहलुओं को छत्तीसगढ़ में शामिल करने की पहल की। गौरतलब है कि उन्होंने छत्तीसगढ़ की सस्ती चावल योजना को भाजपा शासित अन्य राज्यों में कार्यान्वित करने की सिफारिश भी की थी।
पिछले चुनावों में पार्टी हाईकमान के संघ के शीर्षस्थ अधिकारियों के साथ कुछ मतभेद हुए थे जिनसे संबंधों में खटास आई थी और पार्टी संघ की नजदीकियों का पूरा लाभ नहीं उठा पाई थी। गडकरी पार्टी में विचारधारा की पुन: वापसी चाहते हैं इसलिये वह बार-बार दीनदयाल उपाध्याय और श्यामाप्रसाद मुखर्जी की बात कर रहे हैं। कार्यकर्ता सम्मेलन के दौरान भी उन्होंने अंत्योदय की बात कही। दरअसल कांग्रेस पार्टी लगातार अपना हाथ गरीबों के साथ बताती है ऐसे में कांग्रेसी प्रचार की तोड़ के लिये गडकरी भी जड़ों की ओर जा रहे हैं।
गडकरी भाजपा शासित राज्यों की पीठ तो थपथपा रहे हैं लेकिन उन्हें मालूम है कि जब पार्टी सत्ता में होती है तो जनता की अपेक्षाएं भी ज्यादा होती हैं और कई बार अपेक्षाओं का बोझ पार्टी नहीं उठा पाती और एंटीइनकम्बेंसी का भूत पार्टी के पीछे पड़ जाता है। यही वजह है कि वह अपने विधायकों को काम करने की नसीहत दे रहे हैं।
इसके बावजूद भी छत्तीसगढ़ में बहुत से ऐसे मुद्दे हैं जो गडकरी की फीडबैक में नहीं थे लेकिन जिनके संबंध में स्पष्ट नीति बनाये बगैर अगले चुनावों में जनादेश प्राप्त करना आसान नहीं होगा। इसमें से एक मुद्दा तेजी से औद्योगीकृत होते राज्य में पैदा होने वाले भूमि के संकट का है। गडकरी की यात्रा के दौरान औद्योगिक प्रदूषण से तबाह हो गये एक किसान ने गडकरी की सभा में आत्मदाह करने की धमकी दी थी। राज्य में नये एमओयू हो रहे हैं जनसुनवाई हो रही है और जनाक्रोश सामने आ रहा है। आदिवासी शिकायत कर रहे हैं कि उनकी भूमि मल्टीनेशनल कंपनियों के पास बेची जा रही हैं वह अपने संसाधनों का लाभ नहीं उठा पा रहे। 31 प्रतिशत आदिवासी आबादी वाले राज्य में जनजातियों की ज्वलंत समस्याओं पर चर्चा किये बिना जनादेश 2014 की ओर किस प्रकार बढ़ा जा सकेगा।
सार्थक और विचारणीय प्रस्तुती ,गडकरी जी की सोच सही मायने में एक विपक्ष की है ,लेकिन भाजपा के कई बड़े नेता कांग्रेस के साथ मिलकर इस देश को लूटने में व्यस्त है ,ऐसे में गडकरी जी की सोच का क्या होगा ये एक प्रश्न है ...?
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