Monday, May 13, 2013

हुकुस बुकुस तेलिवन चुकुस.........




आईसीआईसीआई बैंक के एड हुकुस बुकुस तेलिवन चुकुस की दो लड़कियों को देखता हूँ तो अपने बचपन के दिन याद आते हैं। तब मैंने पढ़ना सीख लिया था और इस नई विद्या का भरपूर उपयोग कर रहा था। जब अखबार पढ़ना शुरु किया तो मेरे उपयोग के लिए कोई चीज नहीं थी लेकिन मेरी भौतिक वस्तुओं के प्रति चाहत बढ़ने लगी थी। इस चाहत को रास्ता मिल गया और मैं दैनिक भविष्यवाणियाँ पढ़ने लगा था, एक दिन मैंने पढ़ा कि आज का दिन मेष राशि वाले जातकों के लिए बहुत अच्छा है आज उन्हें मनचाही चीज मुफ्त मिल जाएगी। उन दिनों भगवान और हीरो-हीरोईन की फोटो आती थी, वो कागजों के पीछे लिपटी होती थीं, यह सरप्राइज रहता था कि इस कागज के पीछे क्या होगा। मेरे दोस्तों के पास अमिताभ और जीनत का अच्छा कलेक्शन था। मेरी रुचि भगवान की फोटो में थीं।
                                   अखबार में छपी भविष्यवाणी पर पूरा भरोसा करते हुए मैं पास के सिंधी दुकान में चला गया और कुछ दूर पर खड़ा हो गया। मुझे बुलावे का इंतजार था लेकिन दो मिनट में ही मुझे समझ में आ गया कि जिंदगी में अनएक्सपेक्टेड कम ही मिलता है। इन दो लड़कियों को चाकलेट लेते हुए देखा तो लगा कि मुझे अपने भगवान की फोटो मिल गई।
                                     हुकुस बुकुस के बारे में गूगल में सर्च करने पर बहुत रोचक जानकारी मिलती है। यह एक कश्मीरी लोरी है जो बच्चों को सुनाई जाती है और बहुत लंबे से गीत का संक्षिप्त सा हिस्सा है। इसका अनुवाद बड़ा आध्यात्मिक सा है जो इस प्रकार है।
तुम कौन हो और मैं कौन हूँ और फिर हमें बताओ कि वो कौन सृष्टा है जिसने हम-दोनों को मिलाया है.....
हर दिन मैं अपनी इंद्रियों को भौतिक वस्तुओं और प्यार से भर देता हूँ......
ताकि जब मैं सांस लूँ तो मैं संपूर्ण रूप से शुद्ध हो जाऊँ......
इससे मुझे ऐसा लगता है कि मैं दिव्य प्रेम के जल से स्नान कर रहा हूँ।
तब मुझे मालूम होता है कि मैं चंदन की लकड़ी हूँ जो संसार में दिव्यता का सुगंध फैला रही है। मैं जान जाता हूँ कि मैं सचमुच में दिव्य हूँ।
               इस कविता के बारे में कुछ लोग कहते हैं कि ये लाल देद(शैव साधिका) के समय की है। इस कविता के गहरे भाव से ऐसा ही लगता है क्योंकि लाल देद का समय कश्मीर में गहरी आध्यात्मिकता का समय है। हो सकता है कि यह अभिनवगुप्त के समय में लिखा गया हो क्योंकि कश्मीर में अभिनवगुप्त का संप्रदाय भी बड़ा सक्रिय रहा है।
                 मुझे नहीं लगता कि हुकुस बुकुस केवल एक लोरी के बराबर का अर्थ रखता है। इसमें कश्मीर की रूहानियत है। कुछ समय पहले कश्मीर समस्या पर यू-ट्यूब में निर्मल वर्मा का भाषण सुना। उन्होंने कहा कि किसी देश का इतिहास केवल जिंदा लोगों से नहीं बनता, उसमें वे मृत लोग भी साझा करते हैं जिन्होंने इस धरती पर रिश्ते बनाए, अपने सपनों को बुना। हुकुस बुकुस हमें कश्मीर को जानने के लिए प्रेरित करता है और इसे उन अलगाववादियों को जरूर सुनना चाहिए जो इस महान विरासत से भावी पीढ़ी को काटकर एक अजीब किस्म के संकीर्ण रास्ते की ओर मुड़ने की कोशिश कर रहे हैं।









4 comments:

  1. वाह क्या खाका खींचा है
    बहुत सुंदर शब्द चित्रण
    बधाई

    आग्रह है "उम्मीद तो हरी है" का अनुसरण करें
    http://jyoti-khare.blogspot.in

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  2. ये एड देखके सोचा था की क्यों इसे बनाया गया है ... हालांकि माहोल कश्मीरी साफ नज़र आता था ...अब समझ आ गया ...
    ये सच है की काश्मीर जरूर आध्यात्म की नगरी रही होगी किसी समय ... हिमालय की और और उसका आकर्षण सदेव रहा है हमारे ग्रंथों में ... ऐसे इतिहास सजग प्रहरियों के भरोसे ही जीवित रह पाते हैं ... अफ़सोस की तेज़ी के साथ सब कुछ खतम हो रहा है ...

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  3. बहुत देर हो गई इस बार यहाँ आने में .आप को पढना अच्छा लगता है ..कुछ नया,कुछ
    अलग जानने,समझने को मिलता है ......
    बस लिखते रहें .....स्वस्थ रहें!

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आपने इतने धैर्यपूर्वक इसे पढ़ा, इसके लिए आपका हृदय से आभार। जो कुछ लिखा, उसमें आपका मार्गदर्शन सदैव से अपेक्षित रहेगा और अपने लेखन के प्रति मेरे संशय को कुछ कम कर पाएगा। हृदय से धन्यवाद