Friday, April 12, 2013

ओरहान पामुक के पिता का सूटकेस


नोबल पुरस्कार के मौके पर किसी साहित्यकार द्वारा दिया गया भाषण सबसे विलक्षण होता है। संभवतः हर बड़ा लेखक जिसे उम्मीद रहती है कि भविष्य में उसे नोबल पुरस्कार मिलेगा, यह प्लान करता होगा कि उसे इस महान अवसर पर क्या कहना है?
                       मैंने वी.एस. नॉयपाल का भाषण पढ़ा लेकिन मुझे समझ नहीं आया, शायद नॉयपाल का पूरा साहित्य पढ़ने से इसे समझने की दृष्टि आती। नॉयपाल हमारे बड़े करीबी हैं ए हाउस ऑफ मि. बिस्वास के समीक्षक कहते हैं कि इसमें त्रिनिदाद का जीवन जरूर है लेकिन मूल रूप से यह भारतीय परिवार की कथा है। फिर भी मैं सर विद्याधर सूरज प्रसाद नॉयपाल के भाषण से अपने को जोड़ नहीं पाया।
               मुझे बड़ा सुखद आश्चर्य तब हुआ जब मैंने ओरहान पामुक का नोबल भाषण पढ़ा। ओरहान तुर्की के लेखक हैं मुझे लगा कि उनकी दृष्टि मेरी दृष्टि से बिल्कुल अलग होगी। फिर भी मैंने इसे पढ़ने की कोशिश की, यह बिल्कुल सरल धारा सा बहने वाला भाषण था। मूलतः उन्होंने अपने पिता के एक सूटकेस से अपनी बात उठाई।  ओरहान के पिता ने एक दिन उनके पास एक सूटकेस छोड़ा, इसमें उनकी जीवन भर लिखी कविताएँ, संस्मरण, डायरी आदि थी, जिसे अब तक उन्होंने ओरहान को नहीं दिखाया था।
                                    ओरहान का पूरा भाषण इस सूटकेस के आसपास घूमता रहा, ओरहान को हिचक हुई कि इस सूटकेस को खोले या नहीं, शायद पिता की रचनाएँ सचमुच इतनी अच्छी न हों और वे इसे पूरा पढ़ने का साहस न कर सकें, ऐसा न कर पाना पिता के प्रति कृतघ्नता होती और ऐसा करना बस जिम्मेदारी का बोझ उठाए जाना।
                फिर ओरहान ने अपने पिता का लिखा पढ़ा, उन्हें बहुत अच्छा लगा क्योंकि वो उनके युग का दस्तावेज था, ओरहान ने अपने पिता के बहाने उन चीजों को समझाना चाहा, जो एक व्यक्ति को लेखक बनाते हैं। पिता के बहाने इसलिए भी क्योंकि वे यह दिखाना चाहते हैं कि एक सामान्य व्यक्ति भी जिसे अपने लेखन पर बहुत भरोसा न हो क्यों लिखने लगता है?
                        ओरहान ने आगे कहा कि मैं लिखता हूँ क्योंकि मैं वो अन्य सामान्य कार्य नहीं कर सकता जिसे अन्य लोग आसानी से कर लेते हैं। मैं इसलिए लिखता हूँ कि मैं वैसी पुस्तकें पढ़ना चाहता हूँ जैसा मैं लिखता हूं। मैं इसलिए लिखता हूँ कि मुझे अपने कमरे के एकांत में बैठकर लिखना बहुत भाता है। मैं इसलिए लिखता हूँ कि मुझे लाइब्रेरियों की अमरता में मासूम सा भरोसा है। मैं इसलिए लिखता हूँ कि मेरे अपने चाहते हैं कि मैं लिखूँ।
                          मुझे यह भाषण बहुत अच्छा लगा क्योंकि मैं भी ओरहान के पिता की तरह ही सामान्य सा व्यक्ति हूँ जिसे अपने लेखन पर भरोसा नहीं है फिर भी पता नहीं क्यों लिखना मुझे बहुत अच्छा लगता है क्योंकि मैं भी ओरहान की तरह वो अनेक सामान्य कार्य नहीं कर सकता जो अन्य लोग आसानी से कर लेते हैं।

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6 comments:

  1. बहुत उम्दा .सार्थक‍ अभिव्यक्ति.

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  2. आम इंसान होना ही कई बार महत्वपूर्ण होता है ... न की विशेष हो के एकाकी हो जाना ... ओरहान का भाषण प्रभावित करता है ... जो लिखता है ओर डरता भी है ... मानवीय भावनाओं का चित्रण करता है ...

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  4. सामान्य व्यक्ति , बिना किसी आडंबर के बहुत कुछ कर जाते हैं जिनका मूल्यांकन अक्सर उनके जीवन काल में नहीं होता !
    यही समय और मानव जीवन की विडम्बना है !

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  5. वह समय बड़ा अजीब होता है जब सामान्य असामान्य हो जाता है और असामान्य सामान्य। खुशी की बात यह है कि जो सबको अजीब लगे वह कुछ के लिए सामान्य होता है। विद्वानों की बातें बार-बार सुनने से एक फायदा यह भी होता है कि अजीब को स्वीकारने की दृष्टि भी खिलती है भले ही वह अजीब अपना ही अंश हो। निम्न वाक्य पढ़ना अच्छा लगा:
    मैं लिखता हूँ क्योंकि मैं वो अन्य सामान्य कार्य नहीं कर सकता जिसे अन्य लोग आसानी से कर लेते हैं।

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  6. सहजता और सरलता हमेशा भाती है,

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आपने इतने धैर्यपूर्वक इसे पढ़ा, इसके लिए आपका हृदय से आभार। जो कुछ लिखा, उसमें आपका मार्गदर्शन सदैव से अपेक्षित रहेगा और अपने लेखन के प्रति मेरे संशय को कुछ कम कर पाएगा। हृदय से धन्यवाद