Wednesday, February 6, 2013

मेरी कालोनी के हनुमान



उस घटना को चार सौ साल गुजर गए जब हनुमान जी अंतिम बार इस धरती पर अपने अवतारी रूप में प्रकट हुए। फिर तुलसी जैसा भक्त नहीं आया, उन्हें लीला धरने की जरूरत नहीं हुई। फिर हनुमान किसी को नहीं दिखे, वो इलाहाबाद में लेट गए गंगा के किनारे। यह कथा बार-बार याद आती है और सोचकर अच्छा लगता है कि भविष्य में कभी तुलसी जैसे भक्त दोबारा आए तब हनुमान जी भी उन्हें दर्शन लाभ देने अवतार ले लेंगे।
    फिर भी मुझे कभी हनुमान जी के उस रूप में दर्शन करने की इच्छा नहीं हुई। मेरे कॉलोनी के संकट मोचक हनुमान जी इसकी बड़ी वजह हैं। जब भी उनके दर्शन को जाता हूँ और उनकी द्रवित मूर्ति को देखता हूँ तो जैसे सारे क्लेश क्षरित हो जाते हैं तब पाप का भाव मन से नष्ट हो जाता है। ऐसा लगता है कि चार सौ साल बाद भी वो गए नहीं, भक्तों के प्यार से मजबूर यहीं रह गए।
                              पहले नियम था हम तीन दोस्तों का, मंगलवार को जाते थे, एक खास समय में मिलते थे। प्रसाद का नारियल खाकर लंबी चर्चा शुरू करते थे। अब मैंने वो नियम तोड़ दिया। अब अरसे बाद जाता हूँ तब जाता हूँ जब बड़ी खुशी मिलती है तब जाता हूँ जब जन्मदिन होता है। कई महीनों से ऐसा नहीं हुआ कि मन में भाव आया कि दर्शन कर लूँ। बहुत देर से जाने के बाद उनके चेहरे पर शिकायत का भाव दिखता है लेकिन वे ऐसे देवता हैं जिनसे डर नहीं लगता। गणेश जी की तरह ही हनुमान जी बेहद सरल भगवान हैं।
                      पहले उनके सामने मैं मन्नतों की लंबी किश्त रख देता था, अब डिप्लोमैट हो गया हूँ। कह देता हूँ भगवान सुख-शांति दो, मन का अहंकार भी पुष्ट हो जाता है कि मैं अब माँगता नहीं और माँग भी रख देता हूँ।
                                               अजीब सी बात है कि मुझे हनुमान क्यों अच्छे लगते हैं क्योंकि मैं कभी शक्ति के पीछे नहीं पड़ा। हनुमान की बलिष्ठ भुजाओं और पहाड़ उठा लेने, समुद्र को पार करने की अदा की वजह से उनका भक्त नहीं बना। हो सकता था कि एक ताकतवर भगवान मुझे डरा देते और देवी पूजा की तरह ही पूजा में थोड़ा सा भी खलल होने से मैं घबरा जाता लेकिन हनुमान जी शक्ति के शिखर पर खड़े हो जाने के बावजूद भी विनम्र हैं उन्होंने अपने लिए सबसे निचली सीट ली है।
       ग्रुप फोटो खिंचाने के वक्त अपने महत्व का एहसास कराते हुए हम सबसे महत्वपूर्ण आदमी के बगल की सीटों में बैठते हैं। जमीन में बैठे लोग सबसे निचली श्रेणी के होते हैं लेकिन हनुमान जी ने हमेशा वही मुद्रा अपनाई और वो भी सेवा की मुद्रा।
                            समर्पण का ऐसा भाव किसी देवता में नहीं दिखता। शक्ति के शिखर पर होने के बावजूद वैराग्य की ऐसी भावना किसी देवता में नहीं।
              आज जब मैं मंदिर के करीब से गुजरा और युवाओं को मंदिर पर मत्था टेककर बाहर तिलक लगाकर आते हुए देखा तो आश्वस्त हुआ कि हमारे संकटमोचन अभी यहीं है। उनका आशीर्वाद हमेशा सुलभ है और रहेगा।

8 comments:

  1. mere bhi dost hai pawansut
    http://sonal-rastogi.blogspot.in/2010/03/blog-post_30.html

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    1. बहुत अच्छी पोस्ट, मैंने नैनो वाली पोस्ट भी देखी, मध्यवर्ग का सपना किस तरह लंबी गाड़ियों में खो गया, इसका सुंदर वर्णन है।

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  2. सत्य वचन ...यह तो बताये ये आप वाले हनुमानजी [ मंदिर ] है कहाँ ...,

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    1. आपका आभार, यह मंदिर सुंदर नगर, रायपुर में है।

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  3. जय हो .वीर पवन पुत्र हनुमान जी की ......
    श्रदा का भाव हमेशा नम्र बनाता है ...
    शुभकामनायें!

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  4. देखिये तो.....आज भाग्य से आपके blog पर आना हुआ..ये पोस्ट देखी और आज मंगलवार है.
    कृपा बनी रहे हम सब पर.

    अनु

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  5. आस्था और विश्वास से भारी ....सुंदर पोस्ट ....!!

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आपने इतने धैर्यपूर्वक इसे पढ़ा, इसके लिए आपका हृदय से आभार। जो कुछ लिखा, उसमें आपका मार्गदर्शन सदैव से अपेक्षित रहेगा और अपने लेखन के प्रति मेरे संशय को कुछ कम कर पाएगा। हृदय से धन्यवाद