दंडकारण्य के घने जंगलों को मोटरसाइकल से जब चीरते हुए निकलते हैं एलेक्स
तब निर्भयता का एक सौंदर्य गढ़ते हैं दुनिया के लिए
गरीब की कुटिया में बैठकर उनके कुलदीपक से लगते हैं एलेक्स
वे उन सुरक्षा गार्डों की मौत पर रोते हैं जिन्हें सलामी देने की फुरसत भी अधिकारियों
को नहीं होती
इतनी जिम्मेदारी के बाद भी खुशनुमा चेहरा
क्या एलेक्स सचमुच कलेक्टर हैं?
उनके खुशनुमा चेहरे को देखकर तो बिल्कुल ऐसा नहीं लगता
वे दूसरे कलेक्टर्स की तरह रौबदार नहीं हैं
लेकिन हैं उनसे बहुत ज्यादा दबंग
वे शेर की तरह नक्सलियों से उनकी माँद में लड़ते हैं
उन लोगों के लिए भी जिनसे शायद वे इससे पहले कभी न मिले हो
एलेक्स, जल्दी आओ, हमें तुम्हारी बहुत जरूरत है
हमारा खून पानी हो चुका है उसमें गर्मी लाओ
हमारी संवेदना खुश्क हो चुकी है उसे जगाओ
एलेक्स हमें एक बार फिर आदमी बनाओ
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आपने इतने धैर्यपूर्वक इसे पढ़ा, इसके लिए आपका हृदय से आभार। जो कुछ लिखा, उसमें आपका मार्गदर्शन सदैव से अपेक्षित रहेगा और अपने लेखन के प्रति मेरे संशय को कुछ कम कर पाएगा। हृदय से धन्यवाद