हर साल जगन्नाथ जी बीमार पड़ते हैं और अपनी मौसी के घर गुंडीचा मंदिर जाते हैं पुरी में यह भव्य समारोह होता है। रायपुर में भले ही हमें भव्य रथ यात्रा देखने को नहीं मिले लेकिन यात्रा को लेकर भक्तों के मन में उतना ही उत्साह होता है जितना पुरी के राजमार्ग में देखने को मिलता है। प्रभु जगन्नाथ के साथ छत्तीसगढ़ के निवासियों का वैसा ही जुड़ाव है जैसे उड़ीसा और बंगाल के एक विशाल वर्ग का। हमारे मंदिरों की पूजा प्रणाली भी बिल्कुल इसी प्रकार हैं। राजिम में राजीव लोचन मंदिर के प्रांगण में जायें। यहां राजीव लोचन वैसे ही नटखट हैं जैसा कि जगन्नाथ जी हैं। उनके अपने नियम हैं गर्मियों में अलग समय में भक्तजनों को दर्शन देते हैं सर्दियों में उनके पट अलग समय में खुलते हैं। सुबह वह बालक के रूप में, दोपहर को किशोर और शाम को युवा के रूप में नजर आते हैं। सबसे रोचक उनका प्रसाद है। सुबह से ही भोग भात उन्हें लगता है अगर आप सुबह राजीव लोचन मंदिर पहुंच जायें तो आपको इस भोग को ग्रहण करने का अवसर मिलेगा। यह बिल्कुल ऐसा ही है जैसे आप पुरी के महान मंदिर प्रांगण में भोग भात ग्रहण कर रहे हों। यही वजह है कि राजीव लोचन मंदिर के बिल्कुल बगल से ही जगन्नाथ जी का मंदिर भी है। बात अगर रायपुर की करें तो छोटे-छोटे रथों में जगन्नाथ जी निकलते हैं। उनके भक्त पूरी श्रद्धा से उन्हें नगर के मुख्य मार्गों से गुजारते हैं। पूरा शहर इनका आशीर्वाद लेने और प्रसाद लेने उमड़ पड़ता है। पिछले साल रथयात्रा के दौरान मुझे कुछ विलक्षण अनुभव हुए। मैंने रथयात्रा को नगर के प्रमुख मार्गों से होकर गुजरते देखा। हर जगह श्रद्धालु भक्तों ने जगन्नाथ जी को घेरा लेकिन जहां भक्त सबसे ज्यादा भाव-विभोर हुए, वह शहर की एक सबसे गंदी बस्ती थी। मुझे लगा कि इन लोगों को हमेशा से जगन्नाथ जी से दूर रखा गया है और बरसों तक यह बरस में केवल एक बार जगन्नाथ जी के दर्शन ही कर पाये। अब छूआछूत खत्म हुआ है और देवता से संपर्क बढ़ा है अब यह लोग ईश्वर के बहुत करीब आए हैं। इनमें से बहुतों को मैंने आंखें मूंदे हुए प्रार्थना करते देखा।
जहां तक छत्तीसगढ़ में जगन्नाथ जी की पूजा की परंपरा है। श्रद्धालु भक्त लंबे अरसे से यहां की तीर्थ यात्रा करते रहे हैं। छत्तीसगढ़ में इसके प्रतीक चिह्न अब भी हैं। बताया जाता है कि बुढ़ेश्वर मंदिर से पुरी की तीर्थ यात्रा शुरू होती थी। रायपुर में इसके लिये खास तरह के पंडे होते थे जिनका निवास तेलीबांधा तालाब के पास था। यह भक्तों को पुरी ले जाते थे, वहां इनके परिजन पहले ही मौजूद होते थे जहां भक्त इनकी धर्मशालाओं में ठहरते थे। अब जब पैदल तीर्थ यात्राओं का चलन समाप्त हो गया तब इन्होंने भी अपने को समय के अनुसार बदला है। अब यह बस से पुरी की यात्रा कराते हैं।
पुराने दौर के लोगों के पुरी तीर्थ यात्रा के किस्से दिलचस्प होते थे। गांव से तीर्थ यात्रियों के दल बैलगाड़ियों में निकलते थे। पुरी पहुंचते तक महीने भर से अधिक का समय लगता था। फिर पुरी में एक सप्ताह से भी अधिक समय तक रूकना होता था और वापसी। इन यात्राओं में जोखिम भी बहुत होता था। एक बार ऐसी ही यात्रा में एक बड़ा हादसा हुआ था जो पुराने लोगों की जेहन में अब भी ताजा है। बताया जाता है कि अंगुल के पास एक प्रसिद्ध संत आये थे जिनके संबंध में यह प्रसिद्ध हो गया था कि वह अच्छी भविष्यवाणी करते थे। उनके आश्रम में महामारी फैली और सैकड़ों लोग इसका शिकार हुए। मरने वालों में बहुत से छत्तीसगढ़ के भक्त भी थे। पुरी की कथाएं अब भी पुराने लोगों को मालूम है और जगन्नाथ जी जितने उड़ीसा के हैं उतने ही छत्तीसगढ़ के भी।
नए हिंदी ब्लाग के लिए बधाइयाँ और स्वागत। उत्तम लेखन है… लिखते रहिए। अन्य ब्लागोँ पर भी जाइए जिनमें मेरे ब्लाग भी हैं…
ReplyDelete“पारिजात”: http://harishjharia.wordpress.com/
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उत्तम जानकारी के लिए धन्यवाद्|
ReplyDeleteबहुत बहुत सुंदर
ReplyDeleteहिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
ReplyDeleteकृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें
इस नए और सुंदर से चिट्ठे के साथ आपका हिंदी चिट्ठा जगत में स्वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
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