बचपन में मुझे एक फोटो स्टूडियो ले जाया गया, वहाँ काठ का एक घोड़ा था,
मुझे मनाने की कोशिश की गई कि मैं इस पर बैठ जाऊँ लेकिन डर के मारे उस पर
नहीं बैठ पाया होऊँगा। फिर फोटो खिंचाई गई, घोड़े के बिल्कुल बगल से खड़ा
होकर। लंबे अरसे तक वो फोटो रही और मुझे शर्मिंदा किया जाता रहा कि मैं
घोड़े पर नहीं बैठा। वो अच्छी सी फोटो खो गई, तमाम उन सबसे सुंदर चीजों की
तरह जो हमारी जिंदगी में इतनी अहमियत रखते हैं लेकिन जिन्हें हम सहेज नहीं
पाते।
लेकिन वो फोटो मेरी प्रतिनिधि फोटो है हमेशा नेतृत्व करने के मौके पर मैं बैकफुट में चला गया, फोटो स्टूडियो से बाहर भी मैंने उन अवसरों को खो दिया जब एक जिद्दी घोड़े जैसा अवसर सामने था और थोड़ी हिम्मत दिखानी थी। कल डिस्कवरी में एक प्रोग्राम दिखाया, सिकंदर महान के बचपन का, उनके पिता फिलिप के पास एक ऐसा घोड़ा था जिसे कोई नियंत्रित नहीं कर पा रहा था, बालक सिकंदर ने उसे कंट्रोल किया और तभी पता चल गया था कि ये बच्चा विश्वविजेता निकलेगा, उस घोड़े का नाम था बुकेफाल।
उन्हीं दिनों मासूम फिल्म का गीत लकड़ी की काठी बहुत लोकप्रिय हुआ था, घोड़ा अपना तगड़ा है देखो कितनी चरबी है चलता है मेहरौली में पर घोड़ा अपना अरबी है।
भले ही मेहरौली की सड़कों पर चलता है पर घोड़ा अरबी है। जब दिल्ली में रहना हुआ तो मेहरौली के बारे में जाना लेकिन वहाँ घोड़ा नहीं दिखा।
आखिरी बार घोड़ा गाड़ी में दुर्ग में सवारी की थी, पता नहीं पूरे छत्तीसगढ़ में इसी शहर में कैसे घोड़े अब भी बचे हुए हैं।
घोड़ों का हमारी दुनिया से धीरे-धीरे रूखसत होता जाना अजीब टीस से भर देता है। पहले कभी एक घुड़सवार भी दिख जाता था तो शक्ति का, जीवंतता का एहसास होता था। घोड़ों के किस्से से संपन्न हमारा इतिहास इस पीढ़ी में आकर एकदम विपन्न सा हो गया लगता है। अश्वमेध यज्ञ करने वाले आर्यों के वंशजों के लिए सचमुच अजीब बात है कि कोई लड़का खड़ा हो जाए, घोड़े के बगल में और फोटो खिंचाने से मना कर दे।
अगला जन्म हो तो मेरी इच्छा है कि राष्ट्रपति भवन में बची कैवलरी रेजिमेंट की टुकड़ी में मुझे जगह मिल जाए, घोड़ों की अंतिम पीढ़ियों के साथ समय बिताने का कुछ अवसर मिले।
लेकिन वो फोटो मेरी प्रतिनिधि फोटो है हमेशा नेतृत्व करने के मौके पर मैं बैकफुट में चला गया, फोटो स्टूडियो से बाहर भी मैंने उन अवसरों को खो दिया जब एक जिद्दी घोड़े जैसा अवसर सामने था और थोड़ी हिम्मत दिखानी थी। कल डिस्कवरी में एक प्रोग्राम दिखाया, सिकंदर महान के बचपन का, उनके पिता फिलिप के पास एक ऐसा घोड़ा था जिसे कोई नियंत्रित नहीं कर पा रहा था, बालक सिकंदर ने उसे कंट्रोल किया और तभी पता चल गया था कि ये बच्चा विश्वविजेता निकलेगा, उस घोड़े का नाम था बुकेफाल।
उन्हीं दिनों मासूम फिल्म का गीत लकड़ी की काठी बहुत लोकप्रिय हुआ था, घोड़ा अपना तगड़ा है देखो कितनी चरबी है चलता है मेहरौली में पर घोड़ा अपना अरबी है।
भले ही मेहरौली की सड़कों पर चलता है पर घोड़ा अरबी है। जब दिल्ली में रहना हुआ तो मेहरौली के बारे में जाना लेकिन वहाँ घोड़ा नहीं दिखा।
आखिरी बार घोड़ा गाड़ी में दुर्ग में सवारी की थी, पता नहीं पूरे छत्तीसगढ़ में इसी शहर में कैसे घोड़े अब भी बचे हुए हैं।
घोड़ों का हमारी दुनिया से धीरे-धीरे रूखसत होता जाना अजीब टीस से भर देता है। पहले कभी एक घुड़सवार भी दिख जाता था तो शक्ति का, जीवंतता का एहसास होता था। घोड़ों के किस्से से संपन्न हमारा इतिहास इस पीढ़ी में आकर एकदम विपन्न सा हो गया लगता है। अश्वमेध यज्ञ करने वाले आर्यों के वंशजों के लिए सचमुच अजीब बात है कि कोई लड़का खड़ा हो जाए, घोड़े के बगल में और फोटो खिंचाने से मना कर दे।
अगला जन्म हो तो मेरी इच्छा है कि राष्ट्रपति भवन में बची कैवलरी रेजिमेंट की टुकड़ी में मुझे जगह मिल जाए, घोड़ों की अंतिम पीढ़ियों के साथ समय बिताने का कुछ अवसर मिले।
आप को पढना अच्छा लगता है .....जैसे इतिहास की कोई कहानी......कहाँ ग़ुम थे आप ?
ReplyDeleteखुश रहें.स्वस्थ रहें ...
पढ़कर अच्छा लगा। जिस जमाने में सपने देखता था तब रिटायरमेंट के बाद एक-एक साल तक जुटकर करने वाले कामों की सूची में एक काम अस्तबल में घोड़ों के साथ रहने, उन्हें पालने, और दौड़ाने का भी था। तब से अब तक पूरी दुनिया ही दो बार पलट चुकी है।
ReplyDelete